हिंदी सावली – अध्याय १६

।। श्री।।
।। अथ षोडशोध्यायः।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

ईस अध्याय के आरंभ में। पाँच दात्तावातारीयों का स्मरण करे।
माणीकप्रभू हुमणाबाद के। महान दात्तावातारी थे।।१।।

वैसे ही अक्कलकोट में। स्वामी समर्थ विराजे।
गजानन महाराज बने। अवलिया शेगाव के।।२।।

टेम्बे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती। माणगांव की महान हस्ती।
और कैसे भूले शिर्डी। साईंनाथ जहां के।।३।।

यह पांचो पारस के समान। छू जाए भक्तों का जीवन।
और बनाए लोहे से सुवर्ण। अंत नहीं इन के चमत्कारों का।।४।।

इन पांचो को वंदन कर। कृपा बरसाए यह वाचकों पर।
ऐसी उन्हें बिनती कर। ग्रंथ पूर्ती के लिए आशीष मांगू।।५।।

भ्रमर फूल के अन्दर जैसे। भटक कर स्थीर हो जाए।
मन भी हमारा वैसे। स्थीर हो माँ की कथाओं में।।६।।

कालाजी का द्वितीय पुत्र। नाम था शेखर।
शौक था उसे सुन्दर। पर्वतारोहण करने का।।७।।

जैसे हिमालय चढ़े तेनसिंग। भारत का नाम किया रौशन।
वैसे ही यश और समाधान । पाना चाहे शेखर।।८।।

इच्छा थी उस की। अद्वितीय पर्वतारोहण की।
कला प्राप्त करने की। शिबीर में दाखिल हुआ।।९।।

मुंबई के कर्ज़त गाव में। रहे वह छावनी में।
और लगा अभ्यास करने । चंदेरी पहाड़ पर चढने का।।१०।।

शिक्षक शेखर के। इस क्षेत्र में विशेषज्ञ थे।
डोर कील ले जाते। करते छात्रों को मार्गदर्शन।।११।।

पत्थर में कील ठोक कर । उस पर रस्सी बांध कर।
लेकर कील का आधार। रस्सी पकड़ चढ़े ऊपर।।१२।।

चढने लगे शेखर। खड़े कठीण पहाड़ पर।
दुर्भाग्य मिला वहां पर। गीरा ऊपर से निचे।।१३।।

साठ फूट से गीरा निचे। लोग देख चिल्लाये चीखे।
गिर्यारोहक मित्र उतरे निचे। डर गये मन में सारे।।१४।।

सब गये देखने। कल्पना करे मन में।
ऊपर से निचे गिरने। पर क्या हाल हुआ होगा।।१५।।

पास जाकर देखा। तो शेखर बेहोश था।
पूरा शरीर घायल था। खून से था लथपथ।।१६।।

दीन लगा था ढलने। तब लगे उस को उठाने।
शिबीर ले जाने। प्रयत्न करे सारे।।१७।।

दर्द न सहा जाए। न पूरा होश आये।
आह निकले मूह से। शेखर के बार बार।।१८।।

शिबीर दूर था इस लिए। झरने के करीब ले आये।
लाकर उसे सुलाए। एक लंबी शीला पर।।१९।।

सारे बैठ थे पास। कुछ नहीं था साधन ख़ास।
ले जाने शिबीर के पास। वाहन न मिले रात में।।२०।।

लोग खून पोंछने लगे। तब शेखर अधुरा सा जागे।
और उन से कहने लगे। कोई न छुए उसे।।२१।।

कहे “शर्ट माँ ने दिया हुआ। है मैंने पहना हुआ।”
तब लोगों को लगा। दर्द के कारण बोल रहा है।।२२।।

कुछ देर बाद फिर से। जब खून उस का पोंछे।
तब फिर से कहने लगे। लोगों से वही बात।।२३।।

कहे “है माँ का शर्ट पहना। वह मैंने नहीं उतारना।
पास बैठी है नानी माँ। आप न छुए मुझे”।।२४।।

किसी को न समझ आये। लगे बेहोशी में बोल रहा है।
सारी रात थे जाग रहे। बाकी के लोग।।२५।।

भयानक रात ऐसी। जैसे तैसे बीत गयी।
ले आये उसे मुंबई। जैसे निकला सूरज।।२६।।

वैसे ही दीन बीत गया। उसे घर पहुंचाया।
उस दीन उपचार कुछ न हुआ। डर गये घर के लोग।।२७।।

दवाखाने ले गये। डॉक्टर को सारा किस्सा बताये।
डॉक्टर भी चकरा गये। देख कर रूग्ण की हालत।।२८।।

शंका आयी मन में। चोट न हो हड्डियों में।
सो एक्स रे निकालने। की राय दी डॉक्टर ने।।२९।।

एक्स रे निकाल कर देखे। और आश्चर्य में डूबे।
गिर कर इतने ऊपर से। सारी हड्डियाँ सुरक्षित थी।।३०।।

लथपथ था खून से। शर्ट निकाल कर देखे।
शरीर साफ़ करे, पौछे। उपचार करे खरोचों पर।।३१।।

साठ फूट से गिरा निचे। और रहा बगैर उपचार के।
माँ के शर्ट ने बचाया उसे। आश्चर्य हो सब को।।३२।।

शेखर जब था बेहोशी में। नानी बैठी हुई सामने।
दिखी उसे और लगी कहने। “शर्ट न निकाले तन से”।।३३।।

शेखर वही बोल रहा था। जो जानकी माँ से सुनता।
पर अर्थ नहीं समझ आता। क्यों ऐसे बोल रहा है।।३४।।

जानकी माँ नानी उस की। स्वयं उसे संभाल रही थी।
जीवन दान कर रही थी। अपने कर स्पर्श से।।३५।।

शेखर गीरा ऊपर से। पर माँ थाम ले उसे।
कृपा बरसाये ऐसे। संत अपने भक्तों पर।।३६।।

गजानन विजय ग्रंथ में। गजानन महाराज ने।
अनुभव दिया शेगांव में। बिलकुल इसी तरह का।।३७।।

पश्चात महाराज के। जब मठ बांध रहे थे।
गुंबद चढ़ा रहे थे।जब उस मंदिर पर।।३८।।

तब एक कामगार। चढ़ा था ऊपर।
मन लगा कर। गुंबद का काम था कर रहा।।३९।।

दुर्भाग्यवश गिर गया। सब चिल्लाये “हाय मर गया”।
तीस फूट से गिर गया। बचने की कोई आशा न थी।।४०।।

पर उसे कुछ भी न हुआ। जब वह ज़मीन तक पहुंचा।
तब उस ने सब को बताया। चमत्कार हुआ जो।।४१।।

उस ने सब से कहा। “जब मै था गिर रहा ।
तब किसी ने थाम लिया। आराम से आया निचे।।४२।।

जैसे हवाई छत्री लिए। लोग हवाई जहाज से।
ज़मीन पर है उतरते । वैसे ही कुछ हुआ था”।।४३।।

जब वह गिरने लगा। स्वयं महाराज ने पकड़ा।
ज़मीन पर लाकर छोड़ा। ऐसी कथा ग्रंथीत है।।४४।।

प्रल्हाद को नारायण रक्षे। संत नारायण का ही रूप है।
सो रक्षण करने दौड़ आये। भक्तों का सत्वर।।४५।।

ठीक इसी तरह से। जानकी माँ थाम ले।
शेखर को पहुँचाए। सुरक्षित ज़मीन पर।।४६।।

आगे थोड़ी विश्रांती लेकर। पूरा ठीक हो गया शेखर।
निःसंदेह शरण जा कर। आभार माने माँ के।।४७।।

कालाजी ने और एक । अनुभव किया कथित।
वे स्वयं थी पिडीत। बरसों पहले व्याधी से।।४८।।

उन के बाये वक्ष स्थल में। एक गाँठ लगी थी बनने।
वह लगी दर्द करने। लाल लाल होकर।।४९।।

परिवार के डॉक्टर के पास। गयी वे करने इलाज।
वे चिकित्सा करने कहे ख़ास। टाटा अस्पताल में।।५०।।

टाटा अस्पताल के नाम से। कालाजी डर जाए।
मन में विचार आये। कैंसर की संभावना के।।५१।।

अगर कैंसर होगा। तो जीवन समाप्ती का।
वह कारण बनेगा। देह छोड़ जाना होगा।।५२।।

माँ का स्मरण करने लगी। और उन से कहने लगी।
“क्या है इच्छा आप की। मुझे ऐसे मारने की?।।५३।।

अपराध क्या है मेरा। जीस की दे रही हो सज़ा।
क्यों ढली माँ की ममता। आप के मातृ ह्रदय से”।।५४।।

फिर अपने मन में सोचे। अब थोड़े ही दिन बाक़ी बचे।
क्यों न माँ के स्मरण में। बिताऊ बाकी जीवन।।५५।।

अगर करू उस का जयजयकार। तो वे कृपा करेंगी मुझ पर।
और ठीक होगा यह कैंसर। लूंगी जीवन का उपभोग।।५६।।

अगर मै ना ठीक हुई। तो मृत्यू से पहले उतनी।
अल्पसेवा माँ की होगी। जीवन सफल होगा।।५७।।

ऐसा निश्चय कर। टाटा दवाखाने जाकर।
कैंसर की जांच कर। डॉक्टर से मिली वे।।५८।।

टाटा के डॉक्टरों ने। कहा ऑपरेशन करने।
जल्दी हो सके जितने। समय न गवांये ।।५९।।

दीन निश्चीत हो गया। शल्य चिकित्सा का।
एक्स रे निकाल देखा। ऑपरेशन करने से पहले।।६०।।

फोटो में डॉक्टरों ने देखा। गाँठ का नहीं कोई पता।
फिर से जांच कर देखा। डॉक्टरों ने टाटा के।।६१।।

तो वहाँ पर गाँठ नहीं थी। पता न चले कैसी।
गाँठ गायब हो गयी। जो थी कैंसर की।।६२।।

आश्चर्य करे डॉक्टर। कल तक जो थी वहाँ पर।
गायब कैसे हो सत्वर। वक्षस्थल से गाँठ वह।।६३।।

कालाजी से डॉक्टर कहे। “शस्त्रक्रिया का कारण न रहे।
निश्चिंत होकर घर लौट जाए। ठीक हो गयी है आप”।।६४।।

आप के शुद्ध देह में। अब व्याधी न दिखाई दे।
हमें तो यह लगे। अद्भुतसा चमत्कार।।६५।।

आयुर्विज्ञान में पुरे। और अनुभवों मे हमारे।
यह है समझ के परे। कोई न इस का स्पष्टीकरण”।।६६।।

अश्रुपूर्ण हुए लोचन। भक्ती से भर आया मन।
कैसे चुकायें माँ के ऋण। जीवन दान दिया उन्होंने।।६७।।

मन ही मन प्रार्थना करे। माँ से याचना करे ।
यह रिश्ता बना रहे। जन्मजन्मान्तर गुरु शिष्या का।।६८।।

ताके माँ की सेवा कर पाए। और माँ कृपा बरसाये।
हर जन्म सहारा प्राप्त हो जाए। माँ के कृपाशिर्वाद का।।६९।।

उस गणदेवी गाँव में। श्री शीवजी के मंदीर में।
पूजा अर्चना करने। एक वृद्ध पुजारी था।।७०।।

वह नित्य आये। घर पर माँ के।
अष्टमी का अभिषेक करे। माँ की आज्ञा से।।७१।।

जब माँ जाए मंदीर। तब छुए उन के पैर।
शिवजी के दर पर। ख्याती माँ की जान कर।।७२।।

उसे पता थी माँ की किर्ती। माँ प्रत्यक्ष थी जगदम्बा पार्वती।
वह करेंगी इच्छापूर्ती। अगर सच्चे मन से शरण जाए ।।७३।।

वह कहता माँ से। अपनी सारी समस्याएं।
माँ उपाय बताये। कर के समाधान पाये वह ।।७४।।

जब देहावसान हुआ माँ का। तब वह गाँव में नहीं था।
सो न उसे चला पता। माँ के निधन के बारे में।।७५।।

कुछ महीनों के बाद लौटा। अपने कर्तव्य निभाने लगा।
नित्य पूजा करने लगा। यजमानों के घर जा कर।।७६।।

हर अष्टमी को घर आये। अभिषेक करने के लिए।
ऐसे तीन साल आता रहे। ब्राह्मण कर्म करने के लीये।।७७।।

चुपचाप आये घर। शांती से अभिषेक कर।
चला जाए अगले घर। ऐसे तीन वर्ष बीते।।७८।।

एक दीन कुसुमजी से। यूँ ही पूजा के बाद पूछे।
“आज माँ न दिखाई दे। क्या कहीं बाहर गयी है”।।७९।।

कुसुमजी आश्चर्य से कहे। “यह सवाल पूछा कैसे।
तीन वर्ष हो गये। माँ का निधन हो कर”।।८०।।

तब ब्राह्मण डर कर कहे। “यह कैसे हो सकता है।
माँ समीप बैठी रहे। जब भी पूजा करता हूँ।।८१।।

पश्चात पूजा के । सव्वा रुपया दे।
विश्वास करू कैसे। के तीन वर्ष हो गये।।८२।।

आज ना दिखाई दी। तब मन में उत्कंठा जागी।
माँ कहाँ गयी होंगी। इस लिए प्रश्न पूछा।।८३।।

उत्तर सुनकर आप का। मै तो बिलकुल उलझ गया।
तीन साल पता न चला। के माँ नहीं है इस जग में।।८४।।

हमेशा सामने होती थी। मै वापस न आऊ कभी भी।
माँ के बिना पूजा भी। बेजान हो गयी है”।।८५।।

ऐसे कह कर चला गया। वापस न लौट आया।
माँ ने भी नहीं दिया। फिर से उस को दर्शन।।८६।।

सारे सोचे मन ही मन। भाग्यवान यह ब्राह्मण।
माँ देती थी दर्शन। प्रत्यक्ष उस के समीप आकर।।८७।।

अज्ञान था जब तक । माँ दर्शन दे तब तक।
ज्ञात हुआ सत्य जब। तब ना उसे दिखाई दी।।८८।।

एक कुंदा पाटणकर नामक। माँ की थी भक्त।
माँ का स्मरण करे सतत। गोंदिया गाव में रहती थी।।८९।।

माँ की तस्वीर देखे। माँ प्रत्यक्ष सामने पाये।
ऐसी भक्ती मन में लिए। पूजन करे छबी का।।९०।।

छबी संग बाते करे। कहे “माँ आप ही संभाले।
अपनी ममता से रक्षे। कठिनाइयों से हमे।।९१।।

आप की कृपा हो अगर। तो भाग जाए सारे डर।
तर जायेंगे भवसागर। केवल आप के नाम से”।।९२।।

उस गोंदिया गाव में। चोरीयां होती दीन रात में।
अकेलेपन से डर लगे। जब पुरूष जाए काम पर।।९३।।

जब भी जाना होता बहार। माँ से कहे वे सत्वर।
“घर सौंपा है आप पर। रक्षा करे हम आने तक”।।९४।।

बाहर जाते समय। सही लगे एक जगह।
माँ की छबी के समीप। सारे गहने रख कर जाए।।९५।।

एक दीन घर उन के। चोर चोरी करने आये।
कुछ वस्तुएं लेकर गये। पर न चोरी हुए गहने।।९६।।

जब सदस्य घर के। लौट आये बाहर से।
पास माँ की तस्वीर के । दौड़ कर गये सारे ।।९७।।

केवल भगवान के। फोटो उलट पुलट किये।
पर गहने सुरक्षित रहे। कुछ भी न चोरी हुआ।।९८।।

सब लोग आश्चर्य करे। गहने क्यों न चोरी हुए।
कौन चोरों को रोके। समझ न आये कुछ भी।।९९।।

होनी को कौन टाल सके। चोर चोरी कर गये।
पर मूल्यवान वस्तुए। नहीं चुरा पाए वे।।१००।।

जो लिखा है भाग्य में। वह तो होना ही है।
पर सच्ची भक्ती से। प्रभाव हलका हो दुखों का।।१०१।।

चोर चोरी कर गये। कौन उन्हें बुद्धी दे।
हिसाब ऐसे चुकाया जाए। जन्म जन्मान्तर के कर्मों का।।१०२।।

दृढ़ श्रद्धा मन में थी। आखीर काम आयी वही।
माँ धोखा न करे कभी। अपने भक्तों के साथ।।१०३।।

काम बड़ा हो या छोटा। भक्तों को आश्रय माँ का।
अगर उस का दामन छुटा। तो कैसे जिया जाएगा।।१०४।।

जैसे माँ हाथ पकड़ कर। बच्चे को ले जाए राह पर।
बच्चे को खोने का न हो डर। और अपघातों से बचाए माँ।।१०५।।

संत भी बिलकुल ऐसे ही। पकडे भक्तों की उंगली।
ताकी खो न जाए भक्त कहीं। और बचे संकटों से ।।१०६।।

माँ के चरण में करूँ प्रार्थना। संकटों का जब हो सामना।
तब न हमारा हाथ छोड़ना। लड़ने की ताकत दो।।१०७।।

मेले में मोह माया के। हम कभी न अटके।
अगर चुक से भूले भटके। तो वापस लाओ भक्तिमार्ग पर।।१०८।।

।। ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य षोडशोsध्यायः समाप्तः।।

।।शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।

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