हिंदी सावली – अध्याय ६

।। श्री।।
।। अथ षष्ठोध्याय:।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

चलो श्रोताओ आज। कर लेंगे ज्ञात।
अद्भूत अलौकिक नवनाथ। पाये आशीर्वाद उन का ।।१।।

श्रीकृष्ण के आदेश से। कलियुग में प्रकटे।
नौ नारायण अवतरीत हुए। दीक्षा पाई दत्तगुरु से।।२।।

कवी नारायण प्रकटे। मत्स्येन्द्रनाथ रूप में।
जन्म हुआ मछली से । ऐसे माना जाता है।।३।।

हरी नारायण बने गोरक्षनाथ। अंतरिक्ष बने जालंधर नाथ।
प्रबुद्ध बने कानिफनाथ। पिप्पलायन चर्पटनाथ बने।।४।।

अविर्होत्र बने नागेशनाथ। द्रुमिल बने भर्तृहरीनाथ।
चमस बने रेवननाथ। करभजन गहनीनाथ बने।।५।।

मच्छीन्द्रनाथ ने एक गाव में। भोजन किया एक घर में।
अपत्य चाहा उस स्त्री ने। तब विभूती दी मच्छिंद्र ने।।६।।

और कहा उसे खाने। पर उस स्त्री ने।
पड़ोसियों की टिका सुने। कूड़े में डाली विभूती।।७।।

बारह साल बाद जब। मच्चिन्द्र पहुंचे उस गाव तब।
वह स्त्री बताये सब। किस्सा विभूती फेकने का।।८।।

विभूती फेके हुए स्थान पहोंचे। “अलख निरंजन” कहे जोर से।
प्रकट हुए उस कूड़े से। महासिद्ध गोरक्षनाथ।।९।।

जलंधरनाथ प्रकट हुए। गोपीचंद राजा उन्हें।
फेके लीद से भरे कुवे में ।बारह साल योग बल से रहे।।१०।।

कानिफनाथ प्रकटे। हाथी के कान से।
उन के पश्चात आये। चर्पटनाथ और भर्तृहरीनाथ।।११।।

शिव पार्वती ने। चाहा गोरक्ष का विवाह करने।
और योग शक्ती से अपने। सुन्दर स्त्री बनाई।।१२।।

वह गोरक्ष को पती समझती। और उन से अपत्य चाहती।
पर गोरक्ष की न ढले नीती। सारी स्त्रीयां माँ समान।।१३।।

अंत में गोरक्ष उस से कहे। अगर वह उन की कौपीन धोये।
और निचोड़ पानी पिए। तो वे संतती पाएंगी।।१४।।

ऐसे करने के बाद। जन्मे चर्पटीनाथ।
पधारे इन के पश्चात। नागेशनाथ इस जग में।।१५।।

भर्तृहरी राजा ।अपना राज पाठ त्यागा।
भर्तृहरीनाथ बना। सारी वासनाए त्याग कर।।१६।।

तट पर रेवा नदी के ।रेत से रेवननाथ प्रकटे।
आगे गहिनीनाथ आये। जो बने गुरु संत निवृत्तिनाथ के।।१७।।

स्मरण कर योगी नवनाथों के । आशीर्वाद पा कर उन के।
लिखना शुरू करू आगे। माँ के अनोखे अनुभव।।१८।।

जानकी माँ की अगाध लीलाए। मन भर कर सुनिए।
विज्ञान भी सोचता रह जाए। ऐसे अद्भूत चमत्कार।।१९।।

एक आप्त जानकी माँ के। नाम था उन का गुप्ते।
बहोत ही आनंदित थे। क्यों के हुआ था पुत्र।।२०।।

पुराने जमाने में। रखते थे एक कमरे में।
पुरे अँधेरे में । माँ और नवजात शिशु को ।।२१।।

वैसे ही बालक की माँ के। आसपास कोई न भटके।
छाया भी ना पड़ने दे। पुरे दस दीन तक।।२२।।

अँधेरे के कारण। ना समझे शिशु के लक्षण।
आया कहे “सुन्दर तन। पाया है बेटे ने”।।२३।।

आया पर करे विश्वास। उजाले में लाये दस दीन बाद।
सब की खुशीयों का हो विनाश। बालक था चक्शुहीन।।२४।।

डॉक्टर ने आ कर देखा। आँखों की करे परीक्षा।
और उपस्थितों से कहा। बालक अंधा है दोनों आँखों से।।२५।।

इस अंधत्व का। इलाज नहीं होगा।
जीवन ऐसे ही काटना होगा। लाठी के सहारे ।।२६।।

सारा परिवार निराश हुआ। कोई अंत न रहा।
माता पीता के दुःख का। कोसे अपने नसीब को।।२७।।

कुलास्वमिनी जगदम्बा को। माता मन से प्रार्थे वो।
कहे कृपा बरसाओ। अश्रु न हो संपुष्ट।।२८।।

ऐसे जब थी रोती माता। तब अचानक ख़याल आता।
उस के मन में जानकी माँ का। बुलाये उन्हें सत्वर।।२९।।

माँ को बुलावा मीला जैसे। त्वरीत चली गणदेवी से।
और पहुँची पीडीत घर पे। गोद में ले उस शिशु को।।३०।।

शिशु की माता कहे माँ से। “ऐसे इस के करम कौन से।
थे पिछले जन्मों के जीस से। यह इस जन्म में अंधा बना।।३१।।

अगर इस का पुण्य कम हो। तो मेरा पुण्य उसे दो।
पर बच्चे को दृष्टी दो। अंधत्व हरो उस का।।३२।।

जीवन में इस के फूल खिले। अंधत्व के कांटे न मिले।
अगर आप कृपा करे। तो असंभव कुछ भी नहीं”।।३३।।

जानकी माँ अंध बालक के। तन पर हाथ फेरे।
और उसे नाम से पुकारे। कहे “काशीनाथ आँखे खोलो।।३४।।

सारे देख रहे थे। काशीनाथ ने खोली आँखे।
सारा परिवार रहे भौचक्के। खुशी से फुले न समाये।।३५।।

एक हीरा नाम की महिला थी । जानकी माँ की भक्त थी।
वो हुई गर्भवती। सेहत अच्छी थी उस की।।३६।।

किसी के मन में जागा मत्सर। जादू टोना किया हीरा पर।
हुआ गर्भ पर असर। डर गयी बेचारी।।३७।।

डॉक्टर ने की चिकित्सा। पर कारण पता ना लगा।
हाल बुरा था हीरा का। आरोग्य क्षीण होने लगा।।३८।।

नौ महीने पुरे हुए। उस के कृष शरीर से।
दुर्बल बालिका जन्म ले।जो चिंता का कारण हुई।।३९।।

जीस बेटी को जन्म दिया। उसे देख कर आये दया।
अपंगत्व का साया। था जन्म से उस पर।।४०।।

एक पैर उस का । गले में था अटका।
दूसरा पैर था उलटा। देह के अन्दर।।४१।।

दिखने में थी कुरूप। हीरा ने देखा उस का रूप।
उस के भविष्य का क्या होगा स्वरुप। सोच कर रोने लगी।।४२।।

हीरा डर के मारे। दीन रात चिंता करे।
समझ ना आये क्या करे। कैसे संभाले इस बच्ची को।।४३।।

“क्या किसी ने टोना किया। क्यों किसी ने हर लिया।
स्वास्थ्य मेरी बच्ची का। दुर्भाग्यवश किया हमें”।।४४।।

जानकी माँ को पुकारे। रोते रोते याचना करे।
दीन रात चिंता करे। अपने अपंग बेटी की ।।४५।।

जानकी माँ तक जैसे। हीरा की आवाज़ पहुंचे।
वे शीघ्र ही आयी मिलने। इक्कीस दीनों के बाद।।४६।।

शिशु को ले गोद में। उस की तरफ देखे ध्यान से।
और कहे हीरा से। किसी ने किया है बुरा टोना।।४७।।

जानकी माँ से हीरा कहे। मेरा जीवन ले लो चाहे।
पर सुखी करो इसे। अपंगत्व मिटा कर।।४८।।

जानकी माँ कहे हीरा से। रोज़ समय सांझ के।
इस का “उतारा” करे । सव्वा महीने तक।।४९।।

सामग्री विशिष्ट इकट्ठे लेकर। सर से पैर तक और फिर से ऊपर।
घुमाए ऐसे सात बार। इस विधी को उतारा कहते है ।।५०।।

ऐसे सात बार फेर कर। उसे आना है फेक कर।
बिना मुड़े, चले आगे देख कर। पैर धोकर घर में प्रवेश करे।।५१।।

सव्वा महिना ऐसा उतारा। निःसंदेह करे हीरा।
बेटी का हाल ना सुधरा। तब आयी जानकी माँ।।५२।।

कहे, “बच्ची के कपडे उतारे। वे खड्डे में गाड़े।
फीर बेटी को नहलाये । और लाकर दे मुझे”।।५३।।

हीरा बिलकुल करे वैसे। जानकी माँ को बच्ची दे दे।
माँ पकडे उसे प्रेम से। अपने पवित्र हाथों में।।५४।।

ह्रदय में, माँ के। ममता भर आये।
माँ बच्ची को प्यार से। ऊंचा उछाल वापस पकडे।।५५।।

बहोत देर तक ऐसे। तन पर बच्ची के ।
हाथ फेरे, उछाले प्यार से। और फिर से पकड ले हाथों में ।।५६।।

ऐसे खेल कर बच्ची से। हीरा के आँचल में फेके।
और कहे हीरा से। “संभालो सुदृढ़ बालिका अपनी”।।५७।।

देखने वाले न विश्वास करे। माँ अनहोनी को होनी करे।
उस बालिका का अपंगत्व हरे। ठीक हुई थी बच्ची वह।।५८।।

हीरा कहे माँ से। अगर खुद की चमड़ी के।
दूं मै बना कर जुते। तो फिर भी न चूका पाऊ यह ऋण।।५९।।

आश्चर्य और खुशी से सारे। माँ का जयजयकार करे।
यह ऋण जन्म भर स्मरे। भूली न कभी माँ को।।६०।।

बेटी का नाम रखा रेवती।माँ की कृपा से हुई भाग्यवती।
धन संतान प्राप्ती। हुई कृपा से जानकी माँ के।।६१।।

अब सुनो कथा अनोखी। छाबुराव प्रधानजी की बेटी।
बिगड़ी उस की प्रकृती। दाखल किया अस्पताल में।।६२।।

डॉक्टर बहोत प्रयत्न करे। पर व्यर्थ हुए सारे।
वो बेचारी परलोक सिधारे। कमज़ोर होकर।।६३।।

जैसे अस्पताल से। शव ले जा रहे थे।
रास्ते में होश आये उसे। परिवार वाले खुश हुए।।६४।।

अस्पताल फिर से ले आये। डॉक्टरों ने उपचार कीये।
थोड़े दीनो में घर लाये। उस लड़की को प्रधानजी।।६५।।

बदले थे अंदाज उस के। भूली घर के तौर तरीके।
चुरा कर खाए, चुपके चुपके। ना वह भाषा बोल पाए।।६६।।

उस का देख कर वर्तन। शंका हो मन में उत्पन्न।
लेकर अपना शंकित मन। गए दुसरे डॉक्टर के पास।।६७।।

श्री खंडूभाई देसाई सर्जन। जो डॉक्टर थे सज्जन।
अध्यात्म का था विशेष ज्ञान। डॉक्टर होने के साथ साथ।।६८।।

उन्होंने बेटी को देखा। उस में चैतन्य न था।
उन्होंने प्रधानजी से कहा। जो कहेता हूँ, ध्यान से सुने।।६९।।

“आप के बेटी के शरीर में। बेटी का आत्मा नहीं है।
कोई और आत्मा रहे । परकाया प्रवेश कर ।।७०।।

इस लिए उसे कुछ याद ना आये। ना आप की भाषा बोल पाए”।
तब प्रधानजी कहे। आश्चर्यचकीत होकर।।७१।।

“जीस समय बेटी का। अस्पताल में मृत्यु हुआ।
तब और एक गरीब लड़की का। हुआ था देहांत उस वार्ड में ।।७२।।

उस के शव के पास से। जब गुज़रे हम लेकर इसे।
ये जीवित हुई झट से। सब को लगा चमत्कार।।७३।।

पर शायद उस लड़की का। आत्मा इस में प्रवेश पाया।
हमें तो आनंद हुआ। जब बेटी जीवित हुई”।।७४।।

तब उन से कहे देसाई। “इस की कोई दवा नहीं।
किसी संत के कृपा से ही। छूट पायेंगे आप”।।७५।।

तब प्रधानजी कहे। “हम किसी संत को न जाने”।
डॉक्टर देसाई दे उन्हें। जानकी माँ का पता।।७६।।

प्रधानजी आ रहे थे गणदेवी। बेटियों से कहे माँ जानकी।
“तुम देख पाओगे एक लड़की। मर के जो जीवित हुई ।।७७।।

उस ने किया परकाया प्रवेश। ऐसी वह लड़की अजब”।
बेटियाँ कर रही थी आश्चर्य। तब प्रधानजी ले आये बेटी को।।७८।।

सारे सून रहे थे वृत्तान्त। तो जानकी करे कथित।
“जब बेटी हुई मृत। दूसरी लड़की का भी मृत्यु हुआ।।७९।।

वो बंजारन थी। बहोत गरीब थी।
वो इस के शव में पहुँची। परकाया प्रवेश कर।।८०।।

कैसे ज्ञात होंगे उसे । भाषाज्ञान और रिवाज आपके”।
फिर उस को माँ पूछे। “क्यों आयी इस देह में”।।८१।।

तब कहे वह लड़की। “मै बिलकुल गरीब थी।
इच्छा रही भोगों की। खाने को न मिले अन्न।।८२।।

मज़े लेने है जीवन के। मै ना जाउंगी इस देह से।
मुझे ना हटाओ यहाँ से। मानो मेरी बिनती”।।८३।।

यह संभाषण सुन कर। प्रधानजी कहे डर कर।
“मेरे बेटी का जीवन आप पर। अवलंबित है जानकी माँ”।।८४।।

तब उन से कहे माँ। “आप की बेटी का।
पुनर्जन्म है हो चुका। वो न वापस आयेगी।।८५।।

पर उस का शव ना रखे। आप अपने घर में”।
प्रधानजी माँ से कहे। “आप चिंता हरे मेरी।।८६।।

मै पुरी तरह से। जानता हूँ क्या होगा आगे।
जब बेटी ही न रहे। तो शव से लगाव कैसा।।८७।।

आप जो सही समझे। बेझिझक कीजिये”।
तब जानकी बुलाये। उस लड़की को ।।८८।।

जोर से लगाई थप्पड़। जैसे उस के गाल पर।
उस के प्राण जाकर। शव गीरा धरती पर।।८९।।

एक बार गणदेवी गाव में। किसी के घर ब्याह में।
निमंत्रीत करे प्यार से। जानकी माँ को।।९०।।

माँ ना जाए किसी के घर। पर वे बुलाये जोर देकर।
बच्चों की मौसी थी घर। उसे लेकर गयी माँ।।९१।।

अमीरों के घर। ब्याह के ठाट कुछ और।
इन गरीबों की ओर। न देखे कोई ।।९२।।

तो किसी लड़की के सर से। सोने का फूल गूम हो जाए।
सारे लोग ढूँढने लग जाए। पर न मिले किसी को।।९३।।

उन लोगों को गुस्सा आया। उन्हों ने माँ और मौसी से कहा।
“तुम ही ने वह फूल लिया। सोने के लालच में।।९४।।

तुम ना बाहर जा पाओगे । इसी कोने में बैठोगे।
भूखे ही रहोगे। जब तक न वह फूल मिले”।।९५।।

सारे लोगो ने खाना खाया। पर इन दोनों को ना पानी पूछा।
जैसे रात्र समय हुआ। वैसे दादा आये ढूँढते हुए।।९६।।

“पत्नी न आयी घर” कहे । तो मालिक कहे उन से।
“चोरी हुई है शादी में। हमें है संशय इन दोनों पर ।।९७।।

वस्तु जो चोरी हुई । जब तक न मिलेगी।
दोनों यहीं रहेंगी।कहीं न जा पाएंगी तब तक”।।९८।।

दादा को आया गुस्सा अपार। ले आये वे हथियार।
कहे, “कौन कहता है चोर। मेरी सुसंस्कारी पत्नी को।।९९।।

हमारे गरीब होने से। हम चोर न हुए।
क्या पैसे ने बांधी है। पट्टी आप के आँखों पर”।।१००।।

यह झगडा माँ देखे। और कहे दादा से।
“कुल्हाड़ी फेक दे। इस की नहीं आवश्यकता”।।१०१।।

फिर कहे सब से। “क्या आप अंधे हुए।
अमीरी के गर्व से। यह अनैतिक बात है ।।१०२।।

देखते है हम दोनों में। जादा आमिर कौन है।
हमारी ओर नज़र रोके। देखते रहे आप सारे”।।१०३।।

सारे उन्हें देखने लगे। तो देख कर आश्चर्य पाए।
दोनों सजी अलंकारों से। सर से पैर तक।।१०४।।

मुकुट था सर पर। अलंकार पुरे शरीर पर।
सोने की अंगुठीयाँ, हार और पायल। गहनों की कमी न थी।।१०५।।
बहुमूल्य अलंकार थे। किमती रत्न जड़े हुए।
कोई विश्वास न कर पाये। आँखों देखी घटना पर ।।१०६।।

साडी सुन्दर महेंगी सी। जब बरातियो ने देखी।
तब आँखे खुली उन की। गरीबी का न करे अपमान।।१०७।।

जो यह अध्याय पढेंगे। वो संतती संपत्ती पायेंगे।
संतुष्ट जीवन जियेंगे। जानकी माँ की कृपा से।।१०८।।

।।ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य षष्ठोsध्यायः समाप्तः।।

।। शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।

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