हिंदी सावली – अध्याय १५

।। श्री।।
।। अथ पंचदशोध्यायः।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

मर्यादा पुरुषोत्तम रामावतार। श्रीकृष्ण बने पूर्णावतार।
उन की महिमा अपरंपार। आओ उन की लीलाए स्मरे।।१।।

वसुदेव देवकी सूत। जिसे नन्द यशोदा पालत। जन्म से जो चमत्कार दिखावत।
वह कन्हैय्या मालिक सृष्टी का ।।२।।

कंस कारागार में। वसुदेव देवकी को रखे।
उन के आठवे पुत्र से। भय था कंस के जीवन को।।३।।

श्रीकृष्ण संतान आठवी। कारागार में जन्म लेते ही।
द्वार खुले, सोये द्वारपाल भी। वसुदेव श्रीकृष्ण को ले चले।।४।।

भयंकर तूफ़ान उठा था। पर यमुना बना दे रास्ता।
नंद के घर छोड़ा। बालकृष्ण वसुदेव ने।।५।।

गोकुल में पले। वृन्दावन में बसे।
संग बंधू बलराम के। गाय चराए गोकुल का ग्वाला।।६।।

पूतना का वध कर। कालिया मर्दन कर।
धेनुकासुर का विनाश कर। भक्ती स्वीकारे गोप गोपियों की।।७।।
जब हुए क्रोधित इंद्र । वर्षा हुई घन घोर ।
तब कन्हैय्या माखन चोर। बने रक्षक गिरिधर।।८।।

उठाये गोवर्धन पर्वत। एक उंगली के आधार पर।
पर्वत का बनाए छत्र। सारे वृंदावन वासियों के लिए ।।९।।

भरे कौरव सभा में। जब युधिष्ठीर द्यूत खेले।
और सारा कुछ हारे। अपनी पत्नी द्रौपदी भी।।१०।।

भरी सभा में द्रौपदी की। अवहेलना करने की।
कौरवों की इच्छा थी। दु:शासन खींचने लगे चीर।।११।।

पर श्रीकृष्ण की भक्त थी। लाचार अबला द्रौपदी।
प्रार्थना करने लगी। मन ही मन श्रीकृष्ण की।।१२।।

दु:शासन चीर खींचे। चीर खींचता चला जाए।
पर समाप्त होने का नाम न ले। द्रौपदी की लाज रखे मुरारी।।१३।।

शिशुपाल के अपराध निन्यानवे । झेले सहनशीलता से।
उस के माता पिता को दिये। वचन के कारण।।१४।।

जैसे हुए सौ पुरे। तब उस का वध करे।
अपने सुदर्शन चक्र से। उस के कर्मों का फल देने।।१५।।

श्रोताओं इस कथा से। एक सबक सीख ले।
कर्मों से अपने। छूट ना पाये कोई।।१६।।

कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में। अर्जुन लगे थर थर कांपने।
सगे संबंधी देख कर अपने। विरुद्ध पक्ष में।।१७।।

तब जग में ज्ञान बाटा। माध्यम बनी भगवत् गीता।
जीवन का सार कथन किया। इस अनोखे उपदेशसे ।।१८।।

मृत्यू और जन्म । यह माया के है रूप।
आत्मा इन सब से अलग। ना जन्मे न मरे कभी।।१९।।

आत्मा और परमात्मा के। इतने लक्षण कथन किये।
अपना विराट स्वरुप दिखाए। अर्जुन को श्रीकृष्ण।।२०।।

“यदा यदा ही धर्मस्य कहे”। जब भी पाप भूमी पर बढे।
तब तब अवतार ले। यह वचन भगवान का।।२१।।

ऐसे सर्व गुण सम्पन्न। सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण।
उन के कृपा से संपूर्ण। ग्रंथ हो यह प्रार्थना।।२२।।

श्रोताओं का जीवन। सँवारे मुरलीधर श्रीकृष्ण।
हो मनोकामनाये पूर्ण। श्रीकृष्ण की कृपा से।।२३।।

ऐसी प्रार्थना के संग। अध्याय का करू आरंभ।
मन हो हमारा उत्कंठ। जानकी माँ का चरित्र सुनने ।।२४।।

माँ की हो छत्रछाया। वे हरेंगी मोह माया।
सरस्वती और लक्ष्मी की दया। हमेशा रहेगी आप पर।।२५।।

जानकी माँ की बेटी। नाम था कलावती।
काला नाम से पहचान थी। करे भक्ती मन से माँ की।।२६।।

माँ की भी थी काला से प्रीती। सारी कामनाय पूर्ण करती।
कालाजी की देख भक्ती। महाकाली का दर्शन कराया था।।२७।।

कालाजी भी सब से कहती। हम भाग्यवानों को गुरु की।
माँ के रूप में हुई प्राप्ती। माँ ही सवारे जीवन हमारा।।२८।।

यह कन्यायें भाग्यवान। माँ ही जिनकी देवी समान।
पर दुःख न करेंगे इन्हें परेशान। यह सोचना उचित नहीं।।२९।।

हर एक कर्मों से अपने। सुख दुःख ले आये इस जग में।
पांडव भी गये वनवास में। श्रीकृष्ण साथ होते हुए।।३०।।

किसी के कर्म न छूटे। राहों पर भाग्यरेखाओं के।
सद्गुरु मार्गदर्शन है करते। ताकी सही रास्ते चले हम।।३१।।

विनय पुत्र कालाजी का। साँझ के समय खेल रहा था।
बार बार कालाजी से कहता। पेट दर्द कर रहा है।।३२।।

जैसे दर्द बढ़ने लगा। बच्चा वह रोने लगा।
डॉक्टर ने की चिकित्सा। कहा “मामला गंभीर है।।३३।।

आंत्रपुच्छ सूझ गया है। इतना फुला हुआ है।
के वह फूट सकता है। किसी भी समय।।३४।।

अब तक क्या थे सोये। शीघ्र ही भरती कराये।
शल्य चिकित्सा के लिए। बड़े अस्पताल में इसे”।।३५।।

पती थे दफ्तर गये। कौन से अस्पताल भरती करायें।
डर के मारे निर्णय न हो पाये। और समय भी कम था।।३६।।

आखिर कहा डॉक्टर ने। मुंबई के “नानावटी” अस्पताल में।
जो प्रसिद्ध था विलेपार्ले में। वहां भरती कराये ।।३७।।

दाखिल किया अस्पताल में। चिकित्सा करी डॉक्टरों ने।
मिल के निर्णय लिया उन्होंने। शस्त्रक्रीया करनी होगी।।३८।।

कहा ” एक घंटे के अन्दर। शस्त्रक्रीया करनी होगी सत्वर।”
त्वरीत हो डॉक्टर तयार। दवाइयां लाने कहे।।३९।।

पती भी साथ नहीं थे। कालाजी डरने लगे।
माँ का स्मरण करने लगे। मन ही मन भक्ती से।।४०।।

कालाजी कहे मन में। “जब माँ होती थी घर में।
चिंता न होती जीवन में। संभाल लेती सारा कुछ।।४१।।

बच्चों को खसरा भी होता। सहेती ज्वर माँ बच्चे का।
बच्चा उत्साह में खेलता। ऐसी महिमा माँ की।।४२।।

किसी का विषमज्वर। ले लेती अपने ऊपर।
स्वयं पडी रहती शैय्या पर। सारा कुछ सह लेती माँ।।४३।।

अब लगे अकेलापन। कौन संभाले बच्चे का जीवन।
किस का थामुंगी मै दामन। माँ पधारो जल्दी से”।।४४।।

ऐसे स्मरण करते हुए। आँखों से आँसू बहे।
पल्लो से वह पोछ ले। तब आयी एक परिचारीका।।४५।।

शस्त्रक्रिया के कमरे से। बाहर आयी वे।
पास आकर पीठ थोंपे। कालाजी की प्रेम से ।।४६।।

कहे “जो बच्चा अन्दर है। क्या आप उस की माँ है।
सारा कुछ ठीक है। डर निकालो मन से।।४७।।

इतना प्यारा बच्चा है। कह दिया मैंने डॉक्टर से।
केस यह मेरा है। अभी देख कर आयी हूँ।।४८।।

बेटे को समझाया मैंने। शस्त्रक्रीया के बारे में।
जो डर था मन में। वह निकाल मन शुद्ध किया।।४९।।

कहा “अंतड़ी का एक हिस्सा। पेट में है बढ़ा हुआ।
जब निकल दिया जाएगा। तब आराम होगा तुम्हे।।५०।।

जैसे काॅंटा लगे पैर में। वह लगता है दर्द करने।
और लगता है आराम होने। जैसे निकाले काँटे को।।५१।।

डर निकालो मन से तुम भी। मै तुम्हारी हूँ मौसी।
कह दिया डॉक्टर से भी। के यह भांजा है मेरा”।।५२।।

जैसे मैंने यह कहा। वह मुझे देख मुस्कुराया।
मैंने उस को चूम लिया। हाथ फेरा सर से।।५३।।

आप भी मन से निकले डर। मै अपना बेटा समझ कर।
करूंगी उस की देखभाल। शस्त्रक्रिया के समय।।५४।।

आप दवाई न ख़रीदे। व्यवस्था की है मैंने।
आप विश्वास रखे मन में। सब कुछ ठीक होगा।।५५।।

चांदेकर नाम से। सब पहचानते है मुझे।
मैं इस वार्ड में।हूँ प्रमुख परिचारीका ।।५६।।

विनय मेरा भांजा है। ऐसे कहा है सब से।”
ऐसे कहे कालाजी से। धीरज मिले उन को।।५७।।

उपरांत इस संवाद के। समीप गयी विनय के।
कमरे में शस्त्रक्रीया के। घंटे भर में बाहर आई ।।५८।।

कहे “शस्त्रक्रीया सफल हुई। अब चिंता का कारण नहीं।”
बाहर लाये विनय को भी। सब मित्र संबंधी मिले।।५९।।

परिचारीका को बुला कर। कहे सिस्टर चांदेकर।
“सेवा मन से करे सत्वर। यह बच्चा मेरा है ।।६०।।

दवाई दे समय पर। जो मांगे, देना ला कर।
बिना बात, झिझक ना कर। कोई पूछे तो मेरा नाम कहो”।।६१।।

कड़ा अनुशासन था उन का। उन्होंने कालाजी से कहा।
बेझिझक घर आना। अगर कोई कठिनाई हो।।६२।।

मै रहती हूँ पीछे ही । बाबा का ख़याल रखूंगी।
हमेशा चक्कर लगाउंगी । आप निश्चिंत रहे”।।६३।।

कालाजी सोचे मन में। श्रीमती चांदेकर के बारे में।
जी लगाया कितना उन्हो ने। जैसे कोई सगी हो।।६४।।

ऐसे पंद्रह दीन बीते। माता पिता रोज़ थे आते।
तब विनय से सुनते। सारे किस्से चांदेकर मौसी के।।६५।।

दीन में तीन बार। स्वयं लगाए चक्कर।
स्वयं विनय की करे देखभाल। बाकी परिचारीकाये डरती उन से।।६६।।

जब डॉक्टर आते देखने। तब भी वे होती साथ में।
बाकी सारी परिचारीकाये । ख़ास ध्यान रखती विनय का।।६७।।

परिचारीकाये पूछे विनय से। “क्या नाता है हेड सिस्टर से।”
विनय उन को उत्तर दे। “मौसी है वे मेरी”।।६८।।

यह सून कर उस से। ख़ास बर्ताव करे।
जो मांगे मिले उसे। रहे बादशाही ठाट में।।६९।।

कालाजी जाए दोपहर में। तब विनय से सारा कुछ सुने।
कैसे सुनायी मौसी ने। अनोखी कहानियाँ।।७०।।

ऐसे एक दीन दोपहर में। मौसी भी आयी मिलने।
कहा उन से कालाजी ने। “आप के बड़े उपकार हुए।।७१।।

आप ने जो ममता की। वह थी माँ से भी भली।
आप हमें यूँ मिली। पूर्वजन्म के पुण्यों से”।।७२।।

तब मौसी कहे उन से । “ऐसे कुछ भी न सोचे।
एक बार जाने से पहले। आइये घर मेरे”।।७३।।

पूछे बातों बातों में। उन की पसंद के बारे में।
कहे वे कालाजी से । “अचार लेकर आये घर”।।७४।।

दुसरे दीन अचार लेकर। दवाखाने के पीछे आकर।
ढूँढने लगी मौसी का घर। पता पूछने लगी।।७५।।

तब चौकीदार दौड़ आये। कालाजी को टोकने लगे।
ऊपर जाने से मना करे। और कहे कालाजी से ।।७६।।

“दोपहर के समय में। उन्हें क्यों परेशान करे।
विश्राम कर रही होंगी वे। आप का मिलाना उचीत नहीं”।।७७।।

तब छज्जे से आवाज़ आये। “उन्हें जल्दी भेज दे।”
चौकीदार उन्हें जाने दे। मौसीजी प्रतीक्षा कर रही थी।।७८।।

ऊपर पहुँची कालाजी। दरवाज़ा खोले मौसीजी।
कालाजी थी देख रही। सुन्दर कमरा था उन का।।७९।।

पुष्पगुच्छ परदे देख रही थी। तब कहे मौसीजी।
“भक्त लगती है आप भी। भक्ती करती है मन में”।।८०।।

संवाद मजेदार ऐसा। दोनों के बीच चल रहा था।
आखिर उन्हें अचार दिया। और लौटी दवाखाने कालाजी।।८१।।

ग्यारहवे दीन ऐसे। विनय को अस्पताल से।
छुट्टी दे इस लिए। खुश हुए घर के लोग।।८२।।

विनय को तैयार किया। जाने से पहले ख़याल आया।
मौसी से मिलने का। उन के बड़े उपकार हुए।।८३।।

दोनों पहुंचे उन के घर। तब रोके चौकीदार।
कालाजी कहे सत्वर। “चांदेकर मौसी से मिलना है”।।८४।।

उलटा पूछे चौकीदार। “कौन है चांदेकर।
ऐसे न कोई रहते इधर”। कालाजी आश्चर्य करे।।८५।।

कहे “परसों ही हम मिल आये। “छज्जे की ओर बताये।
कहे “वे रहती है। यही ऊपरवाले माले पर”।।८६।।

तब चौकीदार कहे। “आप ठीक से देख ले।
खिड़की वहाँ की बंद है। नजाने कितने महीनो से।।८७।।

वह जगह खाली है। वहाँ कोई न रहे।
चाहे तो आप देख आये। ताला लगा हुआ है”।।८८।।

कालाजी ने जाकर देखा। वास्तव में ताला लगा था।
निचे नामों की सूची में देखा। तो नाम ना मिला उन्हें।।८९।।

फिर से आस पास देखा। जगह वही है पक्का हुआ।
उन्हें बहोत आश्चर्य हुआ। अस्पताल गयी पूछताछ करने ।।९०।।

वहाँ की परिचारियों को पूछा। पता सिस्टर चांदेकर का।
उन्होंने कालाजी से उलटा। पूछा “कौन सिस्टर चांदेकर”।।९१।।

कालाजी चकरा के बोली। “हेड सिस्टर है वे यहाँ की।
वे वापस कब आयेंगी। दस दीन उन से मेल जोल रहा”।।९२।।

हसे सारी परिचारिकाये। कालाजी से कहे ।
“हमें न कुछ भी याद आये। हमारी प्रमुख चांदेकर नहीं”।।९३।।

गड़बड़ा गयी कालाजी। डॉक्टरों से पूछने लगी।
“जो आप के संग काम करती। वे सिस्टर चांदेकर है कहाँ”।।९४।।

वही कहे डॉक्टर भी । “चांदेकर कौन कहाँ की।
यहाँ इस नाम की। कोई व्यक्ती है ही नहीं”।।९५।।

कालाजी वर्णन कर पूछे। पर जवाब एक ही पाये।
के चांदेकर नाम से। कोई कर्मचारी नहीं वहाँ।।९६।।

आखिर अस्पताल का रजिस्टर। ढूंढ़ देखे सत्वर।
तब एक डॉक्टर चांदेकर। थी पांच साल पहेले।।९७।।

उस के बाद कोई भी। इस नाम की कर्मचारी।
हस्पताल में नहीं थी। समझ में ना आये कुछ भी।।९८।।

लाये विनय को घर । पहेली न सुलझे पर।
चांदेकर मौसी का रूप धर। कौन आया होगा मदद करने।।९९।।

तब कालाजी गयी शरण। समझ गयी मन ही मन।
माँ आयी थी स्वयं। बेटी के आसूं पोछने।।१००।।

जैसे नरसी मेहता की। चुकानी थी जब हुंडी।
स्वयं पधारे गिरिधारी। सहायता करने नरसीजी की।।१०१।।

विट्ठल ने पीसा चक्की पर। आटा जनाबाई के घर।
श्रीकृष्ण खंडया बन कर। पधारे एकनाथ जी के घर।।१०२।।

भाऊ कवर को देने दवाई। पहुंचे गजानन महाराजजी।
गजानन विजय में ऐसी। चित्त थरारक कथा है।।१०३।।

ऐसे इश्वर के प्रेम के। और भक्तों की भक्ती के।
अनेक है किस्से। शब्दों में वर्णन ना कर पाऊ।।१०४।।

वैसे ही कालाजी की। देख कर दृढ़ भक्ती।
स्वयं पधारी माँ जानकी। चांदेकर मौसी का रूप धरे ।।१०५।।

माँ देह त्याग गयी। पर लीलाए न कम हुई।
अंतर न हुआ कोई। सगुण या निर्गुण रूप से।।१०६।।

कालाजी धन्य हुई। श्रोताओं इस लिए करो भक्ती।
सच्चे मन से माँ की। वे असंभव को संभव बनाए।।१०७।।

माँ को जीतने का। भक्ती यह एक ही तरीका।
पाओगे आप उन की कृपा। केवल सच्ची भक्ती से।।१०८।।

।।ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य पंचादशोsध्यायः समाप्तः।।

।।शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।

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