हिंदी सावली – अध्याय १०

।। श्री।।
।। अथ दशमोध्याय:।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

पिछले अध्याय में। कहा श्रीपाद श्रीवल्लभ ने।
शनी प्रदोष व्रत करने। ब्राह्मणी को संतान प्राप्ती के लीये। ।।१।।

अगले जन्म में वह ब्रह्माणी। नाम धरे अम्बा भवानी।
शिवभक्त माधव की पत्नी। बनी कारंजा नगर में।।२।।

श्रीपाद श्रीवल्लभ ने। इसी ब्रह्माणी के कोक से।
जन्म लिया नरहरी नाम से। पैदा होते ही ओंकार कहा।।३।।

उस के बाद कभी न बोले। माता पिता चिंता करे।
कैसे गायत्री मन्त्र बोले। बेटा उपनयन विधि के समय।।४।।

नरहरी समझे उन की चिंताए । लोहे का सोना कर दिखाए।
माता पिता अचंबित हो जाए। उन का असमान्यत्व देख कर।।५।।

माता पिता को संकेत से कहे। मौजिबंधन करने के लिए।
समय मौजिबंधन के। चारो वेद पढ़ भिक्षा मांगे।।६।।

लोगों को पता चला। नरहरी का ज्ञान भला।
नरहरी ने माँ से कहा। के वे तप और संन्यास चाहते है।।७।।

माँ की चिंता जान कर। नरहरी ने उन को दिया वर।
“पुत्र होंगे और चार। देखभाल करेंगे आप की”।।८।।

जब एक भाई का जन्म हुआ। नरहरी तीर्थयात्रा निकल गया।
नरसिंह सरस्वती नाम लिया। संन्यास दीक्षा के उपरांत ।।९।।

बहोतों को दीक्षा दी। बहोत बने अनुयायी।
चमत्कारों की कमी नहीं। इन के चरीत्र मे।।१०।।

एक ब्राह्मण को पेट शूल की। थी दीर्घकालीन व्याधी।
उस व्याधी से दिलाई मुक्ती। ब्रह्मण दीर्घयुशी हुआ।।११।।

जीस यवन राजा के दरबार में। सायंदेव काम करे।
वह क्रौर्य से मारे। ब्राह्मणों को यह प्रथा थी।।१२।।

उस ने सायंदेव को बुलाया। छल से उन्हें मारना चाहा।
पर नींद आयी और सो गया। तब गुरु दे उसे दृष्टांत।।१३।।

सपने में उसे पीटा बहोत। वह राजा जब जागा तब।
सायंदेव को करे मुक्त। क्षमा मांगकर, जीवनदान दे।।१४।।

एक मूर्ख नासमझ देवीभक्त। गायत्री मन्त्र भी न कर पाये अवगत।
उसे देवी दे दृष्टांत। नरसिंह सरस्वती के पास जाने।।१५।।

जब मिला श्रीगुरु से। उन के वरदहस्त से।
वह सद्बुद्धी पाए। ग्यानप्रप्ती हो उसे।।१६।।

एक गरीब ब्राह्मण से। आंगन में लगी तरकारी के।
पौधे उखाड़ने कहे। धन पाये वह लता के तले।।१७।।

जब श्रीगुरु नदी पार करना चाहे। तब नदी स्वयं रास्ता बनाये।
ताके श्रीगुरु चलकर जाए। नदी के दुसरे पार।।१८।।

गंगानुज ब्राह्मण को भी। खेतो से खज़ाने की हो प्राप्ती।
और उसे तीर्थयात्रा भी। कराये वायुगती से।।१९।।

ब्रह्म राक्षस को मुक्ती दिलाये। ब्राह्मणी का मृत पुत्र जगाये।
बाँझ भैस को दुहाये। त्रिविक्रम को बताये ईश्वरीय रूप।।२०।।

गर्विष्ठ ब्राह्मण वाद करना चाहे। अपने आप को ज्ञानी समझे।
वेदों पर वाद करे जो गर्व से । उस का ऱ्हास होता है।।२१।।

श्रीगुरु एक हरिजन से। सात जन्म पहेले के।
वेद पाठ याद कराये। जीस जन्म में वह ब्राह्मण था।।२२।।

उस हरिजन के ज़रिये। गर्विष्ठ ब्रह्मण को हराए।
कोढ़ी और कुष्ठरोगी के। रोग निवारे कृपा से।।२३।।

सती जानेवाली नारी का। मृत पती जगाया।
भास्कर ने अन्न बनाया। केवल चार लोगों का।।२४।।

गुरुवस्त्र से अन्न ढका। चार सहस्त्रों ने खाया।
साठ साल की बाँझ महीला। को पुत्र पुत्री का लाभ हुआ।।२५।।

आठ जगह एक ही समय। पहुंचे श्री गुरुराय।
प्रभाती किसान का खेत बचाय। कीड़े पड़ने से सत्गुरु।।२६।।

धोबी पिछले जन्म का। बना था जो यवन राजा।
उसे इस जन्म में मिलकर कहा। “रजक, क्या मुझे भूल गये”।।२७।।

तब पिछले जन्म का। वृत्तांत राजा को याद आया।
उसे अहसास हुआ। नरसिंह सरस्वती अवतार श्रीपाद का।।२८।।

ऐसे नरसिंह सरस्वती। गाणगापुर में जीन की समाधी।
वे दे हमें सुमती और समृद्धी। और ग्रंथ पूर्ती के लिए आशीर्वाद ।।२९।।

जैसे पेड़ की छाया की ओर। खिंचा जाए थका मुसाफीर।
वैसे ही जानकी चरित्र। छाया बन के ठंडक दे।।३०।।

एक बाबु नाम का। भक्त था जानकी माँ का।
माँ को “आत्या” बुलाता। मराठी में “बुवा” को कहे आत्या।।३१।।

हर काम करने से पहेले। जानकी माँ से आज्ञा ले।
कोई काम न करे। माँ की इच्छा के विरुद्ध।।३२।।

एक दीन सबेरे। उसे अचानक पता चले।
आँखों से कुछ न दिखाई दे। रौशनी चली गयी आँखों की।।३३।।

आँखे मलकर देखे। आँखे धोकर देखे।
हर प्रयत्न कर देखे। पर फल न मिले उसे।।३४।।

वैसे बाबु डर गया। और रोना शुरू किया।
पता न चले क्या हुआ। आस पास के लोगों को ।।३५।।

बाबु ने बताया लोगो से। “दृष्टी चली गयी नेत्रों से।
परेशान हुआ हूँ अँधेरे से। मुझे ले चले आत्या के पास”।।३६।।

लोग कहे “डॉक्टर को बुलाये। एक बार जांच कराये”।
बाबु अपनी बात दोहराए। कहे “ले चले पहेले गणदेवी”।।३७।।

बाबु व्याकुल था आत्या से मिलने। दोपहर पहुंचे गणदेवी में।
माँ का हाथ पकड़ लगा रोने। कहे “आत्या अंधत्व आया मुझे”।।३८।।

उसे प्यार से कहे माँ। हाथ पकड़ कर उस का।
“तुम्हे दिखाई देगा। निश्चीत कल सबेरे तक”।।३९।।

बाबु आत्या से कहे। “जब वापस दृष्टी मिले।
तब सब से पहेले। दर्शन हो आप के।।४०।।

माँ ने सोने कहा उसे। तब दादा आये बाहर से।
उन्हें सारा कुछ कथन कर कहे। बुलाये बाबु के पिता को।।४१।।

दादा उन्हें ढूँढने निकले। पर ढूँढते समय थी बड़ी मुश्किलें।
बाबु के पिता घर न मिले। व्यसनाधीन थे मदीरा के।।४२।।

*हमेशा शराब के अड्डे पर रहते। दादा उन्हें ढूँढ रहे थे।
अंत मे मिले ढूँढते ढूँढते। शराब के नशे में धुद ।।४३।।

जैसे लाये उन्हें माँ के सामने। माँ लगी उन्हें डांटने।
“कैसे शराब के नशे में। जीवन का विनाश करे कोई।।४४।।

अपने जीवन के साथ साथ। किया बेटे के जीवन का विनाश।
इस व्यसन का कैसा पाश। के घर के भगवान गिरवी रखे।।४५।।

खंडोबा कुलदैवत तुम्हारे। जो तुम लोगों का रक्षण करे।
आज तेली के घर पड़े। क्यों के गिरवी रखा तुम ने।।४६।।

खंडोबा खुश ना रहे वहाँ। बैलों के संग जुट रहा।
तेल निकाले तेली के यहाँ। इसी लिए गुस्सा करे।।४७।।

खंडोबा ने तुम्हे दी सज़ा। बाबू को अंधा बनाया।
अगर ना उसे छुडाया। और भी विनाश होगा। ।।४८।।

अब तो हो जाओ सावधान। छोडो यह बुरा व्यसन”।
बाबू के पिता धरे चरण। कसम ले माँ के चरणों की ।।४९।।

वे कहे जानकी माँ से। “गलती ना दोहराउंगा फिर से।
बाबू को बचाए संकट से। मै अपना वर्तन सुधारूँगा”।।५०।।

तब माँ कहे उन से । “वापस ले आये जल्दी से ।
उस तेली के घर से। सुवर्ण मूर्ती खंडोबा की”।।५१।।

बात मानकर माँ की। ले आये मुर्ती खंडोबा की।
जो थी गिरवी रखी। दी माँ के हाथ में।।५२।।

बाबु के हाथ में देकर मूर्ती । कहे “खंडोबा को पसंद है हल्दी।
सो चढा कर उस पर हल्दी । मन ही मन प्रार्थना करे।।५३।।

थोड़ी हल्दी पानी में ड़ाल कर। उस पानी को प्राशन कर।
मन ही मन स्मरण कर। उस महारथी खंडोबा के”।।५४।।

मूर्ती हात में रख कर। उस पर हल्दी चढ़ा कर।
हल्दी का पानी प्राशन कर। दृष्टी लौटी धीरे धीरे।।५५।।

जैसे पुरी मूर्ती देखे। सर पर लिए नाचने लगे।
कहे “आत्या की कृपा से। मिला हमें खंडोबा”।।५६।।

बाबू ने छुए माँ के चरण। पीता ने छोड़े दुर्व्यसन।
सुधारा अपना आचरण। परिवार सुखी हुआ।।५७।।

एक बार माँ कहे पती से। भेजे संदेश घर नाना के।
जो एक सुभक्त थे। रहते मुंबई शहर में।।५८।।

होता उत्सव उन के घर। नवरात्री के अवसर पर।
पूजन देवियों का कर। बिताते नवरात्र खुशियों में।।५९।।

इस बार माँ दादा से कहे । “उन के घर संदेश भेजे।
गणदेवी लाये घर की देवताये। नवरात्री के शुभ अवसर पर”।।६०।।

दादा को न पसंद आया। यह विचार माँ का।
गुस्से से उन्हों ने कहा। “ऐसे न कभी कोई करता है।।६१।।

एक का उत्सव दुजे के घर। ना वे हमारे रिश्तेदार।
क्यों आप ज़िद कर। परेशानियां है बढ़ा रही”।।६२।।

ना ज़िद छोड़ी माँ ने। बात मान ली दादा ने।
उत्सव के लिए खर्च करने। तीन रुपये दिये माँ के हाथ। ।।६३।।

माँ की आज्ञा मान कर। नाना आये माँ के घर।
घटस्थापना गणदेवी में कर। वही रहे नवरात्री में।।६४।।

दूर दूर के गावों से। लोग दर्शन लेने आते।
कोई खाली हाथ ना लौटे। आशीर्वाद प्रसाद के बिना।।६५।।

जो जिस इच्छा से आया। उस को वह लाभ हुआ।
देवी माँ ने तथास्तु कहा। भक्तों का भाव जान कर।।६६।।

मंगलमय था हर एक क्षण। ऐसे पुरे हुए नौ दीन।
कुलदेवी चली करने सीमोल्लंघन। तब एक अजीब घटना घटी।।६७।।

नाना की पत्नी भीतर थी। काम सारे निपटा रही।
उन के कमर में मोच आयी। हिलना कठीन हो गया।।६८।।

ना उठ पाए ना बैठ पाये। ना सो पाये ना खडी रहे।
हाथ फेरे माँ कमर पर उस के। और सुलाए उसे थोड़ी देर।।६९।।

उसी समय एक भिक्षु आया। आँगन में खडा रहा।
माँ कहे “उसे हल्दीवाला। दूध दो पीने के लिए”।।७०।।

नाना से कहा और। “तांबे का पैसा लेकर।
हल्दी में भिगो कर। भिक्षु के झोली में डाले”।।७१।।

पर सब उलझे बातों में। कोई न उस की ओर ध्यान दे।
भिक्षुजी चले गये। थोड़ी देर के बाद।।७२।।

बरामदे में जब आयी माँ। हाथ पकड़ कर नाना का।
उन्होंने नाना से कहा। “जानते हो वह भिक्षु कौन था?।।७३।।

खंडोबा थे भिक्षु के रूप में। तुम्हारे संकट हरे जिन्होंने।
स्वयं आये थे दर्शन देने। तुम ने मौका खो दिया।।७४।।

मृत्यु तुम्हारे पत्नी का। इस नवरात्रि में होना था।
मुझे सब कुछ था पता । तुम्हें गणदेवी बुलाया इसी लिए।।७५।।

मोच मृत्यु ले आयी थी। चल बसती पत्नी निश्चीत ही।
स्वयं आकर रक्षा की। उस खंडेराव ने।।७६।।

पर तुम ने उसे कुछ न दिया। खाली हाथ लौटाया।”
यह सुनकर नाना ने कहा। “गलती हुई मुझ से”।।७७।।

उन की पत्नी भी थी वहीँ पर। माँ कहे “ना दुःख कर।
भाग्य में लाया है जो लिख कर। वैसे ही होगा भविष्य में”।।७८।।

दादा मुंबई गये थे । जब लौटे गणदेवी में।
एक रुपया लौटाया माँ ने। कहा “केवल दो ही खर्च हुए”।।७९।।

माँ मुंबई गयी एक बार। अपने भांजे के घर।
जगह का नाम दादर। पांडुरंग सदन नाम बस्ती का।।८०।।

लम्बी पंक्ती में रुकते। बड़ी देर प्रतीक्षा करते।
दर्शन के लिए तरसते। मुंबई के भक्त सारे।।८१।।

सदाशीव गये घूमने एक बार। घर से थोड़ी दूर।
शिवाजी पार्क की ओर। मिले मित्र गंगाधर सुळे से।।८२।।

गंगाधर सदाशिव से कहे। “लोग अंधविश्वास में।
लगे है श्रद्धा करने। तुम्हारे घर का उदाहरण लो।।८३।।

देवी स्वरुप कैसे प्रकटे । इंसान के शरीर में।
भोले भक्तों को फ़साने। भोंदूगिरी करे तुम्हारी मामी”।।८४।।

तब सदाशीव कहे उसे। “मेरा भी मन चाहे।
के मामीजी से। बात करू एक बार।।८५।।

लोग देंगे गालियाँ। यदि किसी दीन ढोंग खुला।
जब मौका मिले पहला। सीधे कहूँगा मामीजी से”।।८६।।

बात हुई जो उन के बीच में। और कोई भी न जाने।
जानकी माँ थी स्नानगृह में। जब सदाशिव घर पहुंचे।।८७।।

क्रोधित थी जब बाहर आयी। सदाशिव को पकड़ जोर से बोली।
“कौन करेगा मनाई। भक्तो को मुझ से मिलने की।।८८।।

क्या कह रहे थे मित्र से?। के हम लगे है ढोंग में?।
किसी को आने न दूॅं घर में?। हिम्मत है भक्तों को रोकने की।।८९।।

सारे भक्त है मेरे बच्चे। मिलने तरसते है माँ से।
संदेह निकाल दो मन से। दिखाती हूँ तुम्हें मेरी शक्ती”।।९०।।

सदाशिव की बाह पकड़ कर। उस को हिलाए बार बार।
सतेज बड़े हुए माँ के नेत्र। क्रोध से चेहरा लाल हुआ।।९१।।

ऐसे ऐसे सवाल पूछे। सदाशिव को पसीने छूटे।
उस को कुछ भी न सुलझे। कैसे दे उत्तर।।९२।।

उस की पत्नी को भी न पता चले। उस ने माँ के चरण धरे।
मन से क्षमा याचना करे । आरती उतारी माँ की।।९३।।

थोड़ी देर में शांत होकर। धड से गिरी ज़मीन पर।
उन्हें रखा पलंग पर। सदाशिव ने बताई सारी हकीकत।।९४।।

“घुमते समय मिला गंगाधर। घर से बड़ी दूर।
बाते चली अंधश्रद्धा पर। मामीजी के बारे में।।९५।।

पता न चले कैसे। मामीजी समझ ले अपनी शक्ति से।
इसी लिए डांटे गुस्से से। दूर हुई आज मेरी शंकाए।।९६।।

शक्ती अपार उन की। मैंने ना जानी थी।
पर अब श्रद्धा मन की। पक्की हुई, मैं बना भक्त”।।९७।।

गंगाधर देशमुख सज्जन एक। उन का सुनिए वृत्तांत।
उन का पुत्र हुआ मृत। किसी बीमारी से।।९८।।

पती पत्नी न भुला पाये। शोक सागर में डूबे रहे।
अनेक मन्नतें माँगते हुए। फिरे, पर न हो पुत्र लाभ।।९९।।

जानकी माँ की किर्ती सुन कर। पहुंचे उस के द्वार पर।
मन से शरण जाकर। कहे बड़ी विनम्रता से।।१००।।

“भाग्य ने छल किया। बेटा कालवश हुआ।
जीवन काटना कठीण हुआ। वंश बढे, पुत्रप्राप्ती हो”।।१०१।।

माँ कुंकुम ले हथेली पर। और कहे हस कर।
“देखो कुंकुम में गौर कर। क्या दिख रहा है।।१०२।।

दो आकृतीयाँ बच्चों की। कुंकुम में उन्हें दिखाए दी।
एक स्पष्ट दूजी अस्पष्ट थी। उस का अर्थ जन्मेंगे दो पुत्र।।१०३।।

कुंकुम ड़ाल कर आँचल में। माँ उन्हें आशीर्वाद दे।
“पुत्रवती भव” कहे। खुश हो गये दम्पती वह।।१०४।।

उन को जुड़वा पुत्र हुए। उन में से एक का मृत्यु हो जाए।
दुजा लम्बी आयु पाये। तब समझे वे अर्थ।।१०५।।

माँ ने कुंकुम में दिखाया। पुत्रों की भविष्य आकृतीयाँ।
स्पष्ट आकृती वाला पुत्र जीया। अस्पष्ट था वह मृत हुआ।।१०६।।
महिमा ऐसी माँ की। जीसे पुत्र की आस थी।
उसे हुई पुत्र प्राप्ती। स्मरण रहे इस बात का।।१०७।।

इसी लिए भक्त जन। सदा स्मरे माँ के चरण।
सच्चे मन से सेवा अर्पण। करे जानकी माँ को।।१०८।।

।।ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य दशमोsध्यायः समाप्तः।।
।।शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।

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