हिंदी सावली – अध्याय ११

।। श्री।।
।। अथ एकादशोध्याय:।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

आरंभ में इस अध्याय के। शक्तिपीठ जो देवी के।
स्थान शीव शक्ती के। आओ उन की चर्चा करे।।१।।

राजा दक्ष की कन्या दाक्षायणी । उसे माना जाता है शक्ती।
शिवजी संग प्रेम विवाह कर बसी। पीता के इच्छा विरुद्ध ।।२।।

शीवजी के मना करने पर भी। पीता के घर बिन बुलायी।
यज्ञ के निमित्त से गयी। पीता ने शीवजी का अपमान किया।।३।।

इस पतिव्रता के क्या कहने। यज्ञकुंड की प्रखर अग्नी में।
आत्मसमर्पण किया शक्ती ने। पती का अपमान ना सह पायी।।४।।

उस का शव उठाया शीवजी ने। और दीवाने होकर लगे घुमने।
गुस्से में लगे तांडव करने। शव को क्षण भर भी ना छोड़े।।५।।

उन्हें होश में लाने। स्वयं भगवान विष्णु ने।
सुदर्शन चक्र से अपने। उस शव के टुकडे किये।।६।।

तब भूमी पर देवी शक्ती के। अंग और अलंकार जहां गिरे।
उन स्थानों पर शक्तिपीठ बने। शीव और शक्ती का वास है वहां।।७।।

अगले जन्म में माता शक्ती। बनी हिमालय पुत्री पार्वती।
शिवजी की बनी पत्नी। यह इतिहास शक्ती पीठों का।।८।।

कामाक्षी और काल भैरव। बसे है कांचीपुरम शहर।
जहां पेट का अलंकार। ओटीयन गीरा।।९।।

जहां पायल श्रीलंका में गिरी। राक्षसेश्वर संग इन्द्राक्षी बसी।
और क्रोधिश संग महिशमर्दिनी। जहां आँख गिरी कोल्हापुर में।।१०।।

नाक बरीयाल बंगलादेश में। जहां सुगंधा और त्र्यम्बक बसे।
महामाया और त्रिसंध्येश्वर बसे। जहां कंठ गीरा अमरनाथ में।।११।।

सिद्धिदा और उन्मत्त भैरव है। जहां जीव्हा गिरी कांगड़ा, हिमांचल में।
ह्रदय है गुजरात में। जहां अम्बाजी का स्थान बना।।१२।।

घुटने गीरे पशुपतीनाथ, नेपाल में। जहां महाशिरा कपाली स्थित है।
दक्षीण हस्त मानस, तिबेट में।जहाँ दाक्षायणी और अमर बसे।।१३।।

नाभी बर्धमान पश्चीम बंगाल में। वहां सर्बमंगला और महादेव बसे।
दक्षिण कपोल पोखरा, नेपाल में। स्थित गण्डकी चंडी और चक्रपाणी वहाँ।।१४।।

बायाँ दंड बहुला, बंगाल में। जहां बहुला देवी और भीरुक बसे।
दाहिनी कलाई उज्जयिनी में। जहां मंगल चंडिका कपिलाम्बर बसे।।१५।।

उदयपुर त्रिपुरा में दाहिना पैर। जहां त्रिपुरा सुन्दरी और त्रिपुरेश।
दाहिनी भुजा चितागाँव, बांग्लादेश। भवानी और चंद्रशेखर बसे वहाँ।।१६।।

बाया पैर जलपैगुडी में। जहां भ्रामरी और अम्बर बसे।
गुप्तांग गुवाहाटी असाम में। जहां कामाख्या और उमानंद है स्थित।।१७।।

पैर का अंगूठा बर्दवान बंगाल में।जहां जुगाद्दया और क्षीर खंदक बसे।
दाहिने पैर का पंजा कोलकाता में। कालिका और नकुलेश्वर बसे वहाँ।।१८।।

जहां उंगलियाँ है प्रयाग में। आलोपी माधवेश्वरी और भव बसे।
बायी जंघा नर्तिंग, मेघालय में। जयन्ती और क्रमदिश्वर वहां बसे।।१९।।

मुकुट मुर्शीदाबाद बंगाल में। विमला और संवर्त वहां बसे।
जहां गीरे कर्णफूल वाराणसी में । बसे विशालाक्षी कालभैरव संग।।२०।।

पीठ कन्याकुमारी में। जहां नारायणी और संकूर बसे।
घुटिका अस्थी कुरुक्षेत्र में। जहां सावित्री विराजी शंतनु संग।।२१।।

कंगन मणीबंध राजस्थान में। जहां ज्ञात्री सर्वानन्द बसे।
गला सिलहट बंग्लादेश में। महालक्ष्मी संबरानंद है जहां।।२२।।

अमरकंटक मध्य प्रदेश में बायाँ नितम्ब। काली बसी असितंग संग।
कन्कलेश्वरी देवगर्भा रुरु संग। जहां अस्थियाँ कन्कलिताला बंगाल में।।२३।।

दाहिना नितम्ब शोंदेश अमरकंटक में। जहां नर्मदा और भद्रसेन है।
दाहिना वक्ष रामगिरी, उत्तर प्रदेश में। जहां शिवानी संग चंड बसे।।२४।।

बालों का छल्ला वृन्दावन में। जहां उमा और भूतेश बसे।
उपरी दात शुची तमिलनाडू में। बसे नारायणी संहार संग जहाँ।।२५।।

निचले दात पंच सागर में। जहाॅं वाराही महारुद्र है।
बायी पायल करतोया तट बांग्लादेश में। अपर्णा संग वामन बसे जहाँ।।२६।।

दाहिनी पायल श्रीसैलम, आन्ध्र में। श्रीसुन्दरी और सुन्दरानंद बसे।
बाई घुटिका विभाष बंगाल में। जहां कपालिनी और सर्वानन्द बसे।।२७।।

पेट वेरावल गुजरात में। जहां चंद्रभागा वक्रतुंड बसे।
भैरव पर्वत पर उर्ध्व ओष्ठ है। अवन्ती बसी लम्बकर्ण संग जहाँ।।२८।।

हनु वणी महाराष्ट्र में। भ्रमरी और विक्रिताक्ष है।
गाल राजमुंदरी आन्ध्र में। राकिणी विश्वेश्वरी वत्सनाभ दंडपानी सह।।२९।।

बाए पैर का पंजा राजस्थान में। जहां अम्बिका अमृतेश्वर है।
दाहिना कन्धा हुगली बंगाल में। जहां कुमारी और शिव बसे।।३०।।

बाया कन्धा मिथिला, नेपाल में। जहां उमा महोदर बसे।
श्वास नलिका नल्हती बंगाल में। जहां कालिका संग योगेश बसे।।३१।।

कान कांगरा हिमांचल में। जहां जयदुर्गा अभिरु बसे।
भ्रुकुटीमध्य बकरेश्वर बंगाल में। महिषमर्दिनी और वक्रनाथ बसे।।३२।।

तलवे सतखीरा बंग्लादेश में। जहां जशोरेश्वरी और चंड बसे।
अधर वर्धमान बंगाल में। फुल्लरा और विश्वेश स्थित जहाँ।।३३।।

कंठहार बीरभूम बंगाल में। जहां नंदिनी और नंदिकेश्वर बसे।
ब्रम्हरंध्र बलूचिस्तान में। कोट्टरी भीमलोचन जहाँ बसे ।।३४।।

दंत छत्तीसगढ़ में। दंतेश्वरी कपालभैरव बसे।
बाया वक्ष कांगड़ा में। जहां वज्रेश्वरी कालभैरव बसे।।३५।।

बाई आँख, चंडीस्थान बिहार। जहां बसे चंडिका और भोलेश्वर।
दाहिनी जंघा पटना बिहार। जहां पाटन देवियाँ है भैरव संग।।३६।।

यह शक्तीपीठ सारे। जीन में देवी स्वयं वास करे।
इन में और भी होंगे न्यारे। त्रुटि हो तो क्षमा करे।।३७।।

आदी शंकराचार्य के अनुसार यह। महाशाक्तीपीठ है अठारह।
इनकी सूची लिखने का मोह। टाला न जाये हम से।।३८।।

शंकरी देवी त्रिंकोमाली श्रीलंका में। जहां कमर का भाग है।
कामाक्षी कांची तमिलनाडू में। पीठ है जहां देवी की।।३९।।

पेट प्रदुम्न पश्चीम बंगाल में। जहां श्रुंखला देवी विराजे।
केश गीरे मैसोर में। जहां बसी है चामुंडेश्वरी।।४०।।

उपले दात आलमपुर आन्ध्र में। जहां जोगुलाम्बा का वास्तव्य है।
कंठ श्रीशैलम आन्ध्र में। जहां भ्रमराम्बा है बसी।।४१।।

आँखे कोल्हापुर महाराष्ट्र में। जहां महालक्ष्मी विराजे।
दाहिना हस्त नांदेड में। एकवीरा देवी का स्थान जो।।४२।।

उपला होठ उज्जैन में। जहां महाकाली बसी है।
बाया हाथ पीठापुर आंध्र में। पुरुहुतिका विराजी है जहां।।४३।।

नाभी टनकपुर उत्तराखंड में। जहां पूर्णागिरी मंदीर है।
बाया गाल द्रक्षरमं आन्ध्र में। जो मनिक्यम्बा देवी का स्थान है।।४४।।

योनी है गुवाहाटी में। जहां कामरूपा देवी है।
उंगलियाँ है प्रयाग में। जहां माधवेश्वरी विराजी है।।४५।।

मस्तक कांगरा हिमांचल में। वैष्णोदेवी का जहां वास है।
वक्ष गया बिहार में। सर्वमंगला बसी है जहाँ।।४६।।

कलाई है वाराणसी में। स्थान जो विशालाक्षी का है।
दाहिना हाथ कश्मीर में। सरस्वती जागृत है वहाँ।।४७।।

ऐसे ही साडे तीन पीठ महाराष्ट्र में । एक तुलजाभवानी, महालक्ष्मी कोल्हापूर में।
माहुर की रेणुका मिलाकर तीन बने। सप्तश्रुंगी का पीठ आधा माना जाता है।।४८।।

सारे शक्तीपीठों को प्रणाम कर। उन के सामने नतमस्तक होकर।
ग्रंथपूर्ती की कामना पुरी कर। यह विनंती देवी माँ से।।४९।।

वैसे ही श्रोते सारे। इन पीठों से शक्ती पाये।
जीवन उज्वल हो जाए। मनोकामनाए उन की पूर्ण हो।।५०।।

यह बिनती कर देवी से। ग्रंथ बढ़ाऊ मै आगे।
जानकी माँ की भक्ती के धागे। बांध कर रखे हमें।।५१।।

जैसे सुहाने गीत के स्वर। सुननेवालों को करे बेकरार।
चाहे वे यह गीत सुन्दर। समाप्त न हो कभी भी।।५२।।

वैसे ही माँ का चरित्र। भक्तों को करे व्याकुल।
अगली कथाये सुनने बेकरार। मन हो भक्तों का।।५३।।

जानकी माँ के घर। सारे सदस्य थे खुश हाल।
बेटियों के विवाह कर। जिम्मेदारियों से हुई मुक्त माँ ।।५४।।

वत्सला, चिमणा, तारा का। राज़ी खुशी विवाह हुआ।
कुसुम को दी भगवत गीता। बरात के समय विवाह में।।५५।।

कहे “गीता से होगा प्राप्त ज्ञान। मै करूंगी मार्गदर्शन।
समृद्ध होगा जीवन। चिंता न करे ज़रा भी”।।५६।।

फिर काला के विवाह में । सारे आप्त आये मिलने।
बैठी थी माँ आँगन में। मंगल कार्य होने के पश्चात।।५७।।

कुसुमजी भी वहीँ थी। बाते कर रही थी।
अचानक बात छेडी। माँ ने सुहागन के मृत्यु की।।५८।।

कुसुमजी से कहा माँ ने। “कभी न देखा तुम लोगो ने।
अगर मृत हो सुहागने। तो अन्तःविधी अलग होता है।।५९।।

सुहागन के शव को। अभ्यंग स्नान कराओ।
साड़ी चूड़ी पहनाओ। सती के तरह पूजन करो।।६०।।

समझो अगर मृत हो जाऊं मै। चूड़ी साड़ी है पेटी में।
ओटी का नारियल भी है। सारा पहनाओ मुझे”।।६१।।

रीत है मराठी लोगों में। सुहागन के आँचल में।
रखे दूसरी सुहागने। वस्त्र, चावल और नारियल ।।६२।।

इसे “ओटी भरना” कहते है। यह सुहागनों से संबंधीत है।
मराठीयों में प्रचलित है। रीत यह महाराष्ट्र की।।६३।।

जब सूनी कुसुमजी ने। अशुभ बाते माँ के मुख से।
चिढ़ कर कहा माँ से।”हमें नहीं सुनना कुछ भी”।।६४।।

फिर भी माँ कहे। “सुहागनों का पूजन करे।
और फिर दीन तेरहवे। जो भी आये उसे भोजन कराओ”।।६५।।

अपने कानो पर। दोनों हाथ रख कर।
कुसुमजी वहां से उठ कर। चली गयी नाराजी से।।६६।।

अनौपचारिक संभाषण यह। अधुरा रहे उस समय।
गये अपने अपने घर। गणदेवी से लोग सारे।।६७।।

चिमणाजी के घर। पती के संग आया मित्र।
यह था एक मांत्रिक। जेठालाल पुराणी नाम था।।६८।।

भविष्य कहे लोगों का। साथ था कर्ण पिशाच का।
प्रयोग करे जादू टोने का। जाना माना मांत्रिक था।।६९।।

वे चिमणाजी से कहे। “भविष्य कहूँ हाथ दिखाए।
“चिमणा मना कर, कहे। “मैं न बताऊ किसी को हाथ”।।७०।।

मुख देख कर जेठालाल पूछे। “अलौकिक शक्ती दिखाई दे।
माँ के अन्दर आप के। क्या वे मिलेंगी मुझ से”।।७१।।

कहा हस कर चिमणाजी ने। “श्रद्धा लेकर जो जाए।
माँ उस के प्रश्न सुलझाए। बेझिझक जाए आप मिलने”।।७२।।

जेठालाल गया गणदेवी में। पहुंचा माँ के दर्शन करने।
साष्टांग नमन कर लगा कहने। “मै बड़ा पापी हूँ।।७३।।

मैंने विद्या सीखी मलीन। कुकर्म करे जा कर शमशान।
मंत्र से पिशाच करे अधीन। कुंवारी कन्याओं की बली चढ़ाई।।७४।।

कुकर्म में उलझा मै। गुरु छोड़ गये उस दशा में।
अब आगे न बढ़ पाऊं मै। और न मूड पाऊं पीछे।।७५।।

अटका हूँ ऐसे बीच में। सारा शरीर लगे जलने।
जब पिशाच लगे सताने। अब आप ही बचा पाएंगी मुझे”।।७६।।

तब माँ कहे उसे। “तुम अधूरी विद्या से।
मुक्त हो जाओ पहेले। विद्या पुरी करो अपनी।।७७।।

मै करूंगी मार्गदर्शन। पुरी विद्या करो सम्पादन।
फिर करो विसर्जन। यज्ञ में उस विद्या का।।७८।।

तुम्हारे ऐसे करने से। मुक्ती पाओगे गुरु वचन से ।
पाप जल कर राख होंगे। उस यज्ञ में तुम्हारे।।७९।।

पर नासमझी या गलती से भी। इस मार्ग पर फिर कभी।
ना भटको ज़रा भी। मनुष्य जन्म का लाभ उठाओ।।८०।।

भक्ती के मार्ग पर। हमेशा चल कर।
जीवन का कल्याण कर। यह मुर्खता छोडो तुम”।।८१।।

आँखों में आसू ले कर। चरण स्पर्शे माँ के बार बार।
यज्ञ के लिए उतावला होकर। कहे “कब करेंगे यज्ञ”।।८२।।

देख कर पंचांग कहे माँ। शुभ दीन है चैत्र अष्टमी का।
ऐसा न और कोई मौका। मिलेगा यज्ञ के मुहूर्त को।।८३।।

चैत्र नवमी को अगले। दोपहर साडे बारा बजे।
हम यह लोक छोड़ चलेंगे। राम नवमी के मुहूर्त पर।।८४।।

पंचांग में यह तारिख। लिख कर गुप्त रख।
अगर खुला यह रहस्य। तो गोहत्या का पाप लगेगा तुम्हें”।।८५।।

देखे संतों को कैसे। मृत्यू से ना डर लगे।
जीवन मृत्यू की सीमाए। बांध के न रखे उन्हें।।८६।।

जैसे आये इस जग में। वैसे ही चला जाना है।
यह सत्य वे समझे। अकारण महत्व न दे मृत्यू को।।८७।।

एक सिक्के की दो बाजुए। जन्म और मृत्यू है।
यह तत्व समझ पाये। जानकी माँ जैसे संत।।८८।।

अगला कर मार्गदर्शन। विद्या करे शमशान में पूर्ण।
और आया शुभ दीन। चैत्र अष्टमी का।।८९।।

उस चैत्र के उत्सव में। बहोत भक्त आये मीलने।
आप्त भी आये गणदेवी में। पता चला जब यज्ञ के बारे में ।।९०।।

आहुतियाँ बहोत सारी। यज्ञ में अर्पण करी।
विद्या भी विसर्जन करी। जेठालाल के हाथ से ।।९१।।

सफ़ेद कद्दू की आहुती दे। जब छुरी उस पर फेरे।
तब कद्दू से खून निकले। यज्ञकुंड में गिरने लगे।।९२।।

सारे लोग आश्चर्य करे। कैसे कद्दू से खून निकले।
पर किसी को न पता चले। अजीब रहस्य यज्ञ का।।९३।।

यज्ञ में करे पुर्णाहुती। जेठालाल को मिले शांती।
मलीन विद्या से हो मुक्ती। दास बना माँ के चरणों का।।९४।।

ऐसे साल बीत गया। फिर से चैत्र मास आया।
वसंत ऋतू का आगमन हुआ। फूलों से सजी धरती।।९५।।

पर फूलों में न था सुगंध। सृष्टी में न था चैतन्य।
इस का कारण न कोई अन्य। माँ के प्रयाण का दीन आया था।।९६।।

तीरथ संतों के चरण धोये। स्वयं पावन होने के लिए।
सारी पवित्र नदीयाँ पधारे। माँ के चरण धोने।।९७।।

मंदिरों में धरती पर। कीर्तन के गूंजे स्वर।
श्रीरामजी का जयजयकार। चले चारो दिशाओं में।।९८।।

सारे देवता स्वर्ग में। मिल कर लगे सोचने।
कौन ले आये स्वर्ग में। जानकी माँ को धरती से।।९९।।

राम नवमी के अवसर पर। स्वयं रामजी पधारे धरती पर।
सप्त अश्व के सुवर्ण रथ पर। माँ को लेने आये थे ।।१००।।

माँ का देखने स्वर्गारोहण। इकट्ठे हुए सारे भगवान।
संत जनों के दर्शन। का लाभ न हो रोज़ रोज़।।१०१।।

पुष्प वृष्टी देवता करे। सारी देवियाँ आरती उतारे।
अपनी बहनों से मिल संतोष पावे। जानकी माँ स्वर्ग में।।१०२।।

आनंदोत्सव हो स्वर्ग में। इंद्र स्वयं आये मिलने।
सारे स्वागत लगे करने। अभिनन्दन करे माँ का।।१०३।।

सर्व कार्य पृथ्वी पर। यशस्वी और पूर्ण कर।
भक्तों के संकट हर। पृथ्वी से आयी जानकी माँ ।।१०४।।

परलोक सिधारना माँ का। कोई न सह पायेगा।
इसी लिए दूर रखा था। शायद माँ ने आप्तों को।।१०५।।

स्वास्थ्य ठीक नहीं था। चादर पर सोयी थी माँ।
पास थे उन के दादा। इस लिए समझा उन का स्वर्गवास।।१०६।।

माँ जग से चली गयी। ऐसे न सोचे कतई भी।
वे निर्गुण रूप में रही। भक्तों के संग भक्ती पाने।।१०७।।

श्रोताओं माँ के चरणों में। आदरांजलि अर्पण करे।
स्वर्गारोहण देखा कल्पना से। धन्य माने अपने आप को ।।१०८।।

।।ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य एकादशोsध्यायः समाप्तः।।

।।शुभं भवतु।।
।। श्रीरस्तु।।

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