हिंदी सावली – अध्याय ५

।। श्री।।
।। अथ पंचामोध्याय: ।।

श्री गणेशाय नमः। श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

अब पांचवा अध्याय आरंभ करू। श्री दत्तगुरु के चरण स्मरू।
स्मर्तृगामि* जो जगद्गुरु। मोक्ष दिलाये जन्म मृत्यू से।।१।।

(*स्मर्तृगामि – मात्र स्मरण से जिन्हे बुलाया जा सकता है ऐसे।)

अनुसूया अत्री पत्नी। सुविद्य और सुलक्षणी।
नितीशाली और गुणी। असाधारण पतिव्रता।।२।।

एक दीन अचानक। ब्रह्म विष्णु महेश।
अतिथी का धर वेश। पहुंचे अत्रीजी के द्वार पर ।।३।।

घर नहीं थे जब अत्री ऋषी।परीक्षा अनुसूया के चारित्र्य की।
करने पहुंचे यह अतिथी। पत्नीयों के कहने पर।।४।।

अतिथी ईश्वर समान। इस बात का रख कर ध्यान।
अनुसूया पहुँची करने दान। भिक्षा का उन तीनो को।।५।।

पर अतिथी कहे उन से। नग्नावस्था में परोसे।
तब ही भिक्षा आप से। स्वीकारेंगे हम।।६।।

द्विधा में फसी। सुशील अत्रीपत्नी।
अगर उन की शर्त न मानी। तो अतिथी लौटेंगे बगैर खाए।।७।।

अतिथी का करना स्वागत। यह यजमान का कर्तव्य।
अगर लौटे खाली पेट। तो पाप लगता अनुसूया को।।८।।

अगर वह अन्न दे। उन्हें विवस्त्रावस्था में।
तो उन्हें गवाना पड़े।सती का शील।।९।।

अनुसूया थी सती। उन में थी सत्व की शक्ती।
की उन्होंने एक युक्ती। प्रयोग किया शक्ती का।।१०।।

अपने अलौकिक शक्ती से। उन तीनो को शिशु बनाए।
अनुसूया ममता से कराये। स्तनपान नग्नावस्था में।।११।।

अत्री ऋषी जब घर आये। अपने मंत्र शक्ती से।
सारा कुछ समझ गये। नमन करे त्रीमुर्ती को।।१२।।

जब घर न लौटे पती। तब ब्रह्म विष्णु महेश की।
पत्नीयां आश्रम पहुँची। अत्री ऋषी से मिलने।।१३।।

पतियों को देखे अपने। जब अर्भक अवस्था में।
तब गर्व लगा टूटने। पती लौटाने की याचना करे।।१४।।

तब अत्री ऋषी उन्हें। फिर से मूल रूप में।
प्रकट करे अपने। मन्त्र शक्ती से।।१५।।

पती पत्नी विनंती करे। त्रिमूर्ती से अनुसूया कहे।
“बेटा चाहू मै जीस में। आप तीनों का अंश हो”।।१६।।

देख भाव अत्री ऋषी का। और शील अनुसूया का।
उन के शब्द का मान रखा। पुत्र रूप में पधारे।।१७।।

दत्तात्रेय नाम रखा। अत्री रूशी ने उन का।
ब्रह्म विष्णु महेश का। अंश और गून था उन में।।१८।।

यह दत्तात्रेय त्रिमूर्ती। जो मनुष्य को दे मुक्ती।
छुड़वाए आसक्ती। गुरु रूप में प्रकटे वे।।१९।।

उस पवित्र त्रिमूर्ती के। आशीर्वाद पाये श्रोते।
और मुझे आशीष दे। ग्रंथ रचने दत्तगुरु।।२०।।

पाकर मनुष्य जन्म । हुए है हम सब धन्य।
सफल करे सारा जीवन। जानकी कथा पढ़ कर।।२१।।

संतों का चरित्र। करे जीवन पवित्र।
हम बने निमित्त मात्र। काम हो उन की कृपा से ।।२२।।

जानकी माँ देवी रूप प्रत्यक्ष। भक्तों के लिए अतिदक्ष।
भक्तों का उद्धार यही लक्ष्य। था जीस के जीवन का ।।२३।।

सारे लोग बैठे थे। बाते कर रहे थे।
गप्पे रंग लाये थे। एक दीन आंगन में।।२४।।

तो दूर कहीं से। सुन्दर स्वर शहनाई के।
सब को सुनाई दे। ध्यान दे कर सुने सारे।।२५।।

वह स्वर जैसे। पास आये वैसे।
बेटियाँ पूछे जानकी माँ से। यह मधुर संगीत कैसा।।२६।।

तब जानकी माँ कहे। “इन्द्र भगवान यज्ञ करे।
स्वर्ग में शुभ कार्य चले। सो आये है गणेशजी ।।२७।।

वे निमंत्रण ले आये। संग शहनाई बाजत जाए।
वही ध्वनी आप सून रहे। श्री गणेश का आगमन हुआ”।।२८।।

माँ यह कहते हुए। हाथ आगे बढाए।
तो प्रकट हो हाथ मे। एक सिंदूरी पत्थर।।२९।।

कहे, “आमंत्रीत करने आये। इन्द्र के शुभ कार्य के लिए।
श्री गणेश स्वयं प्रकट हुए। हाथ में मेरे”।।३०।।

उस छोटे सिंदूरी पत्थर में। गणेशजी की मूर्ती दिखे।
सारे उसे वंदन करे। आश्चर्य चकीत होकर।।३१।।

माँ सब से कहे। मूरत मंदीर में रखे।
पंधरह दीन रहेंगे। गणेशजी अतिथी बन कर।।३२।।

रोज़ करे पूजन। भोग के लिए बनाए पक्वान्न ।
गणेशजी के दर्शन। कर गये बहोत लोग ।।३३।।

जैसे पंधारह दीन हुए। गणेशजी अदृश्य हुए।
पता न चले कहाँ गए। प्रश्न पूछे बेटियाँ।।३४।।

तब जानकी माँ कहे। मेरे कहेने पर रुके।
गणेशजी चले गए। इन्द्र के यज्ञ के लिए ।।३५।।

सोचे जानकी कितनी महान। स्वर्ग में यज्ञ के कारण।
उसे करने निमंत्रण। स्वयं पधारे गणेशजी ।।३६।।

जानकी माँ का एक ही बेटा । मुंबई में पढ़ाई करता।
आप्तों के संग रहता। उसे “बापू” कहते सारे।।३७।।

एक दिन अचानक से। पेट में उस के।
दर्द होने लगे। अस्पताल दाखिल हुआ।।३८।।

पेट पर हुई शास्त्रक्रीया। पर खून न थम पाया ।
डॉक्टर ने बार बार देखा। जख्म उस का खोल कर।।३९।।

टाके लगाते बार बार। ऐसे हुआ छे बार।
पर जख्म करे बेज़ार। खून न रुके बिलकुल भी ।।४०।।

बापू हुआ कमज़ोर।गणदेवी में भेजे तार।
आने को कहे डर कर। अपने माता पीता को।।४१।।

दादा देखे तार। माँ को सुनाये पढ़ कर।
पुत्र की चिंता से बेकरार। जाना चाहे मुंबई।।४२।।

पैसे भी नहीं थे पूरे। माँ से याचना करे।
पुत्र का संकट हरे। यही चाहे मन से।।४३।।

तो जानकी माँ उन्हें ।दे मिस्री के दाने।
कहे दादा से गिनने। सम है या विषम।।४४।।

दानों की संख्या विषम रहे। माँ खुशी से कहे।
बेटे का जीवन सुरक्षीत है। दादा छूए माँ के चरण ।।४५।।

थोड़े पैसे दे कर। माँ कहे खुश हो कर।
जाए निश्चिंत हो कर। बेटे को दिया आरोग्य ।।४६।।

माँ भी चले साथ में । दोनों गए मुंबई में।
पहुंचे अस्पताल में। डॉक्टर कर रहे थे चिकित्सा।।४७।।

माॅं गयी पुत्र की ओर। पास खड़े थे डॉक्टर।
माँ पूछे सत्वर। कहाँ से बह रहा है खून।।४८।।

जैसे हाथ फेरा पेट पर । गुलाब का फूल आया निकल।
वह फूल ज़ख्म पर। फेर कर दिखाये चमत्कार ।।४९।।

झट से रूका खून। डॉक्टर करने लगे वंदन।
विज्ञान लगे अज्ञान। यह चमत्कार देख कर।।५०।।

माँ की कृपा पाकर। बापू गया घर।
माँ की तस्वीर लगाये डॉक्टर। अस्पताल में नमन करने ।।५१।।

अस्पताल के डॉक्टर। उस तस्वीर को वंदन कर।
जानकी का स्मरण कर। दीन की शुरुवात करे।।५२।।

एक थी भांजी माँ की। माँ से करे बहोत प्रिती।
कथा बड़ी निराली उस की। सुनो मन लगा कर।।५३।।

उस के पैर में दर्द था । दर्द चला जाए बढ़ता।
डॉक्टर करे चिकित्सा। मुंबई के अस्पताल दाखिल हुई।।५४।।

डॉक्टर ने निदान किया। करनी होगी शस्त्रक्रिया।
अगर पैर काट लिया। तो शायद जान बचे।।५५।।

अगर न काटा पैर। तो सारे इलाज बेकार।
यह जान खो कर। परलोक सिधारेंगी।।५६।।

पर भांजी कहे सब से। “एक बार दर्शन हो माँ के।
फिर जो चाहे निर्णय ले। तब तक ना करे शस्त्रक्रीया”।।५७।।

देख कर रोग की गंभीरता। डॉक्टर ने निर्णय लिया।
बेहोश कर, करे शस्त्रक्रीया। पैर काटा शरीर से।।५८।।

जैसे उसे होश आया। कटा पैर देख गुस्सा आया।
कहे, “क्यों पैर काट लिया। बगैर बुलाये बायजी को”।।५९।।

गुस्सा चढ़ा जैसे। बेहोश हुई फिर से।
बेहोशी में चल बसे। उस के हुए अंतिम संस्कार।।६०।।

माँ का नाम ले कर। आत्मा छोड़ गया शरीर।
यहाँ जानकी माँ हो बीमार। कमज़ोर हुई बहोत ।।६१।।

तब उसे ले आये मुंबई। शिंधानी के अस्पताल में रही।
जहां भांजी चल बसी। माँ रहे उस वार्ड में।।६२।।

भांजी की आत्मा पर। करने आयी उपकार।
जानकी उस अस्पताल। देखो संजोग कैसा।।६३।।

वह घूमे उस वार्ड में। हाल पूछे पीड़ितों से।
पर स्वयं ना ले मुख में। जल भी वहाँ का ।।६४।।

ऐसे कमजोरी जाये बढ़ती । डॉक्टर भी करे बिनती।
दवा लेने की करे सक्ती। पर माँ न ले दवाई।।६५।।

ऐसे दस बारह दीन बीते। एक स्त्री रोगी चिल्ला उठे।
कोई उठा के उस को फेके। मध्यरात्री के समय ।।६६।।

वो महिला अस्वस्थ हुई। उस पर हमले करे कोई।
पर वो दिखे नहीं। ऐसे हुई पिशाच बाधा।।६७।।

ऐसे पहेले भी था होता। रोगी उस पलंग पर डर जाता।
और फीर मृत्यु पाता। उस पिशाच बाधा से।।६८।।

सारे लोग सोचे। अब ये रोगी न बचे।
पर जानकी माँ उठे। और जाए पास उस रोगी के।।६९।।

जैसे रोकी नज़र। उस रोगी पर।
वैसे वह शांत हो कर। नमस्कार करे माँ को।।७०।।

माँ उस पर रखे हाथ। ताके वह हो शांत।
माँ की लीला देख।डॉक्टर को हुआ आश्चर्य ।।७१।।

जब श्रेष्ठ डॉक्टर आये। नमस्कार करने के लिए।
तब माँ उन से कहे। किस्सा उस पलंग का।।७२।।

कहे, “एक स्त्री रोगी। इस पलंग पर बेहोश थी।
यहीं पर मृत हुई। जब काटा उस का पैर।।७३।।

उस के अन्तिम संस्कार हुए। बगैर कटा पैर लिए।
पिशाच हुई वह इसी लिए। परेशान कर रही है।।७४।।

जब आप शस्त्रक्रीया करे। वह पीछे खडी रहे।
आप से याचना करे। पैर दे दो मेरा।।७५।।

जब आप सुई लगाते। तब मन में डर जाते।
लगे कोई हाथ पकडे। रोके है आप को”।।७६।।

डॉक्टर देखे आश्चर्य से। के जानकी माँ कैसे।
जाने यह सच्चे किस्से। जो किसी और को न ज्ञात थे।।७७।।

खोजने लगे डॉक्टर। उस रोगी का पैर।
जैसे मिले उस पर। विधी कर, विसर्जीत किया।।७८।।

ऐसे जानकी माँ की लीलाएं। भांजी को मुक्ती दिलाये।
बाकियों को छुटकारा दिलाये। पिशाच बाधा से।।७९।।

शस्त्रक्रीया के कक्ष में। डॉक्टर माँ की छबी लगाए।
नित्य उसे वंदन करे। फिर शुरू करे अपने काम।।८०।।

दूसरे दीन कहे माँ। “अब हमें जाना होगा”।
तब डॉक्टर ने कहा। थोड़े दीन रूकने के लिए।।८१।।

परन्तु माँ ने कहा। “अब यहाँ का काम हुआ।
इसी कारण आना हुआ। ताके मोक्ष मिले भांजी को”।।८२।।

बेटी आये दोपहर में। कहे माँ से घर चलने।
“रास्ते में चलेंगे दर्शन लेने। मुंबई के महालक्ष्मी का”।।८३।।

चले महालक्ष्मी मंदीर में। दोपहर के समय में।
दूकान सारे बंद थे। ना मिले प्रसाद फूल की थाली।।८४।।

जैसे मंदीर पहुंचे। पुजारीजी भोजन करने निकले।
मंदीर के द्वार बंद करे। कहे श्याम को होंगे दर्शन।।८५।।

मन में निराश हुए । कहे, “इतनी दूर से आये।
बगैर दर्शन लिए। क्यों लौटाए पुजारीजी”।।८६।।

तो पुजारी ने खोला द्वार। कहे, “जल्दी करे व्यवहार”।
गए मंदर के अन्दर। पूजा की थाली बीना लिए।।८७।।

महालक्ष्मी काली सरस्वती। तीन देवियों की एक एक मूर्ती।
माँ की हो इच्छा पूर्ती। अपने बहेनो से मिलने की।।८८।।

जैसे फैलाये आँचल। निकले फूल वस्त्र नारियल।
पुजारीजी को दे श्रीफल। पूजा करने के लिए।।८९।।

जैसे माँ देखे लक्ष्मी की ओर। काला भी देखे उस ओर।
आश्चर्य करे देख कर। लक्ष्मी के माथे का कुंकुम।।९०।।

जो पहेले गोल था। अचानक वो बढ़ने लगा।
पुजारीजी ने भी देखा। और हुए नतमस्तक।।९१।।

चरण छुए माँ के। तब माँ कहे उन से।
“देवी सेवा करे मन से। और भक्तो से सुव्यवहार”।।९२।।

ऐसा उपदेश किये। माँ चले वहां से।
कुछ दीन काला के संग रहे। फीर लौटे गणदेवी।।९३।।

वैसे ही डॉक्टर देशपांडे। माँ के सुभक्त थे बने।
दुसरे महायुद्ध में। जाना हुआ उन्हें सेना में।।९४।।

मिलीटरी वाॅरंट निकला था। कैंप में दाखिल होना था।
जान कर युद्ध की गंभीरता। माँ से मिलने आये।।९५।।

पत्नी को लेकर आये। युद्ध से संरक्षण चाहे।
सच्चे मन से शरण आये। अर्पण करे श्रीफल।।९६।।

माँ ने श्रीफल मांग लिया। उन की पत्नी को दिया।
औरे उसे संभालने कहा। सात साल तक माँ ने ।।९७।।

कहे, “सात साल रहेंगे। देशपांडे उस रणांगण में।
फीर सुरक्षीत लौटेंगे घर में। तब तक संभालो यह श्रीफल।।९८।।

जब आयेंगे लौट कर। तब तोड़ना यह नारियल।
ऐसे उन्हें बता कर। विदा किया युद्ध के लिए।।९९।।

सात साल पुरे बीते। युद्ध से जीत कर लौटे।
तब नारियल तोड़ देखे। ताज़ा निकला अन्दर से।।१००।।

सब को आश्चर्य हुआ। नारियल में पानी था ।
अन्दरसे ताज़ा रहा। सात साल बाद वह नारियल।।१०१।।

कभी भविष्य बताये माँ। स्वातंत्र्य संग्राम का।
बड़े बड़े नेताओं का। तिलक और गांधीजी का।।१०२।।

कहे तिलक गौरवपात्र होंगे। पर कारावास भुगतेंगे।
तब कर्म मार्ग बताएँगे। अंग्रेजों के कैद में रह कर।।१०३।।

ठीक वैसे ही हुआ। जैसे जानकी माँ ने कहा।
गीता रहस्य ग्रन्थ लिखा। जब वे कारावास में थे।।१०४।।

ऐसे ही कहती थी माँ। गाँधीजी की अहिंसा।
अंग्रेजों का ना छोड़ेगी पीछा। भारत होगा स्वतंत्र।।१०५।।

गांधीजी बनेंगे महान नेता। पर अंत बुरा होगा।
उन की होगी हत्या। पर होनी कौन टाल सके।।१०६।।

वैसे ही सारा सच हुआ। माँ ने जो था कहा।
भविष्य बड़े नेताओं का। दुनिया ने देखा सब।।१०७।।

जो यह ग्रंथ पढ़ेगा। उस का भविष्य उज्वल होगा।
माँ बरसाएंगी संपन्नता। उस भक्त पर।।१०८।।

।। ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य पंचमोsध्यायः समाप्तः।।

।।शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।

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