।।जानकी माॅं की आरती।। (धुन – जय जगदीश हरे)
जय जानकी जननी। मैया मानवरूप धारिणी।।
भक्त कृपा के प्यासे, आस लगाए बैठे, तू संकटहरिणी।।ध्रु।।
कल्पवृक्ष की छाया, तुम्हारे आँचल में, माँ तुम्हारे चरणों में।।
हम आम लोग फल चाहे, तू कृपा बरसाए, तू है सुखदायिनी ।।१।।
हम मानव साधारण, हम आये तेरे शरण, माँ छुए तेरे चरण।
कभी ‘आई’ कभी ‘बायजी’, कभी कहे ‘जय जय जानकी’, तू है वरदायिनी ।।२।।
हम बालक है तेरे, तू ममता की मूर्ती, माँ कर ईच्छापूर्ती।।
तू जो मन में चाहे, सब मंगल हो जाए, तू सब से बड़ी दानी।।३।।
हम को दे सदबुद्धी, हो विद्या धन प्राप्ती, दे व्याधीयों से मुक्ती।
अज्ञानी मतीहीन हम, दुराचारी पापी हम, तू भवसिन्धु तारिणी ।।४।।
हर जन्म दे तेरी भक्ती, ताके छूटे आसक्ती, हो ईश्वर की प्राप्ती।
छुड़वा जन्मों के फेरे, उपकार अनंत है तेरे, हम जन्मांतर के ऋणी।।५।।
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