हिंदी सावली – अध्याय १२

।। श्री।।
।। अथ द्वादशोध्याह।।

श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।

विष्णु पालनहार सृष्टी के। सो विष्णु सहस्त्र नाम के।
पहले कुछ नामो से। शुरू करू यह अध्याय।।१।।

आज कल के तेज़ जीवन में। सहस्त्र नाम हम न ले पाये।
पर भक्तों की भावनायें । समझे श्री विष्णुजी ।।२।।

पहेले इक्यावन नाम। करेंगे आज सार्थ स्मरण।
ताके विष्णुजी हो प्रसन्न। मनोकामना पूर्ण करे।।३।।

‘विश्वं’ नाम का अर्थ ब्रह्माण्ड है। ‘विष्णू:’ नाम का अर्थ सर्वव्यापी है ।
‘वषट्कार:’ जो आहुति से पाया जाय। चौथा ‘भूत-भव्य-भवत-प्रभु:’।।४।।

अर्थ बहोत ही सीधा इस का। इश्वर भूत, वर्तमान और भविष्य का।
‘भूत-कृत’ नाम पाचवा। इस का अर्थ विश्व का निर्माता।।५।।

‘भूत-भृत’ का अर्थ पालनकर्ता। छठा ‘भाव:’ जो कोई भी रूप धर सकता।
आत्मा सब की यह अर्थ ‘भूतात्मा’ का। नाम ‘भूत-भावनः’ नौवा।।६।।

जीस का अर्थ कारण उत्पत्ती का। पवित्र तत्त्व अर्थ ‘पूतात्मा’ का।
सर्वोच्च आत्मा अर्थ ‘परमात्मा’ का। बारहवा नाम ‘मुक्तानां परमागतिः’।।७।।

अर्थ अन्तिम लक्ष्य पुण्यात्माओं का। अविनाशी अर्थ ‘अव्ययः’ नाम का।
नौ द्वारों के शहर में रहनेवाला। यह अर्थ है ‘पुरुषः’ का।।८।।

नौ द्वारों का शहर। जो के हमारा शरीर।
विष्णुजी बसे है हमारे अन्दर। इस शरीर में निवास करे।।९।।

‘साक्षी’ नाम पन्धरहवा। जीस का अर्थ प्रमाण सत्य का।
ज्ञानी अर्थ ‘क्षेत्रज्ञ:’ का। ‘अक्षर’ का अर्थ अनश्वर।।१०।।

‘योगः’ नाम अठरहवा। जो योग से है पाया जा सकता।
उन्नीसवा ‘योगविदां नेता’। जो मार्गदर्शक योगीयों का।।११।।

‘प्रधानपुरुषेश्वर:’ नाम बीस वा। अर्थ इश्वर महान पुरुषों का।
‘नरसिंहवपु:’ इक्कीस वा। जो हो प्रकट नरसिंह अवतार में।।१२।।

‘श्रीमान’ जो हमेश श्री के संग होनेवाला। अर्थ ‘केशव:’ का सुन्दर बालोंवाला।
‘पुरुषोत्तम’ का अर्थ श्रेष्ठ नियंता। ‘सर्वः’ का अर्थ सब कुछ।।१३।।

‘शर्वस’ का अर्थ शुभ। सत्ताईस वा नाम ‘शिवः’।
याने निरंतर पवित्र। ‘स्थाणु:’ का अर्थ अटल सत्य।।१४।।

‘भूतादिः’ का अर्थ मूल पंचतत्वों का। ‘निधि:-अव्ययः’ नाम तीस वा।
धन समाप्त न होने वाला। एकत्तीस वा नाम ‘संभवः’ है।।१५।।

याने की स्वेच्छा से जन्म पानेवाला। ‘भावनः’ नाम बत्तीस वा।
भक्तों को सब कुछ देनेवाला। ‘भर्ता’ याने विश्व का नियंत्रक।।१६।।

‘प्रभावः’ का अर्थ पंचतत्त्वों का निर्माता। सर्वशक्तिमान इश्वर अर्थ ‘प्रभू:’ का।
ईश्वरः नाम छत्तीस वा। जिसे सहारे की आवश्यकता नहीं।।१७।।

‘स्वयंभू:’ जो प्रकट हो अपने आप से। ‘शंभु:’ जो शुभत्व लाता है।
नाम उनतालीस वा ‘आदित्य’ है। जो अदिती का पुत्र वामन बना।।१८।।

‘पुष्कराक्ष:’ का अर्थ नैन जीस के। सुन्दर कमल की तरह है।
‘महास्वनः’ नाम इकतालीस वा है। जीस की भीषण गर्जना है।।१९।।

‘अनादी-निधनः’ नाम बैयालिस वा । अर्थ कोई आदि और अंत नहीं जीस का।
अर्थ ‘धाता’ नाम का। हर अनुभव का आधार है।।२०।।

‘विधाता’ का अर्थ कर्मफल देने वाला। ‘धातुरुत्तमः’ नाम पैतालिस वा।
सब से सूक्ष्म तत्व अर्थ जीस का। ‘अप्रमेयः’ नाम छय्यालिस वा है।।२१।।

समझ के परे रहनेवाला। ‘हृषीकेशः’ याने ईश्वर विवेक का।
‘पद्मनाभः’ नाम अड़तालीस वा। जीस की नाभी से है कमल खिला ।।२२।।

‘अमरप्रभू:’ का अर्थ ईश्वर देवों का। ‘विश्वकर्मा’ का अर्थ निर्माता विश्व का।
और जो वैदिक मन्त्रों में प्रकट होता। ‘मनु:’ नाम एक्क्यावन वा।।२३।।

यह नाम स्मर विष्णुजी के। आशीष पाऊ ग्रंथपुर्ती के लिए।
सुखशांती का लाभ हो जाए। भक्तों को विष्णुकृपा से।।२४।।

विष्णुजी की महिमा स्मरीये। और जानकी माँ की अगली कथाये।
मन से और ध्यान से सुनिए। रोमांच उठेंगे पढ़ कर।।२५।।

जैसे पक्वानो की ओर। भूखा हो आकर्षीत।
वैसे ही जानकी चरित्र। आकर्षीत करे भक्तों को।।२६।।

कथाओं के पक्वानों की। भूक है मन में जागी।
अब वह ना मिटेगी। अगली कथायें पढ़े बगैर।।२७।।

पिछले अध्याय में पढ़ा। माँ का स्वर्गवास हुआ।
जान कर शोकार्त हुआ। मन सारे श्रोताओं का।।२८।।

किसी को दूरध्वनी कर। किसी को तार भेज कर।
किसी को स्वयं संदेश पहुंचा कर। खबर दी माँ के देहांत की।।२९।।

जैसे लोगो ने खबर सूनी। माँ के स्वर्गवास की।
वैसे भीड़ हुई भक्तों की। गणदेवी गाव में।।३०।।

कुसुमजी चली बड़ोदा से। उन को एक ज्योती दिखाई दे।
दूर दूर चली जाए। गाडी में हो यह दर्शन।।३१।।

भय उठे मन में उन के। प्रार्थना करे भगवान से।
“माँ को भरपूर आयु दे। अनाथ न करे हमें”।।३२।।

अश्रु से भरे लोचन। शंका हो मन में उत्पन्न।
क्या माँ का सुहास्य वदन। देख पायेंगे हम फिर से।।३३।।

मुंबई से आयी कलावतीजी । बिलिमोर्या से टाँगे में चली।
घर की ओर जाने लगी। तब उन्हें माँ दिखाई दी।।३४।।

बैठ कर सुन्दर झूले पर। माँ देवी रूप में सज ढज कर।
सामने विरुद्ध दिशा की ओर। चला गया चित्र यह।।३५।।

तब वे भी मन में डर गयी। लगे “माँ शायद हमें छोड़ गयी।”
सारे पहुंचे गणदेवी। मुंबई से पुत्र भी आया।।३६।।

घर के बाहर भीड़ देखे । मन ही मन सारे समझ गये ।
कुसुमजी दुःख से भान हरे। रास्ते में दौड़ शवधार पकडे।।३७।।

कहे “न ले जाए माँ को”। पर लोग समझाये उन को।
“संभाले अपने आप को”। शांत होने को कहे।।३८।।

तब उन्हें याद आया वह दिन। माँ के संग हुआ संभाषण।
जब मृत हो सुहागन। तब के विधी के बारे में।।३९।।

याद कर उठी वे। स्फूर्ती चढ़े तन में।
बताये विधी के बारे में। तैयारी करने लगी।।४०।।

सुगंध लेपन तैयार करे। पानी गरम कर ले।
माँ को पटिये पर बिठाये। सुगंध लेपन करे उन्हें।।४१।।

उष्ण पानी से अभ्यंगस्नान करायें । हरी चूड़ी-साड़ी पहनाये।
बालों में फूल सजाये। श्रीफल से ओटी भरे।।४२।।

रिवाज है महाराष्ट्र में। ऐसे मराठी लोगों में।
हरी चुडीयाँ मानी जाए। सुहाग की निशानी ।।४३।।

ओटी भी सुहागन की ही भरे। नारियल और चावल आॅंचल में डाले।
और कोई अधिकार ना पाये। ओटी भरने या भराने का।।४४।।

कुंकुम लगाए माथे पर माँ के। वह अपने आप बढ़ने लगे।
तब बाकी सुहागनों को बुलाये। प्रसाद कुंकुम दे सब को।।४५।।

सती का प्रसाद लेने। उठ आयी सारी सुहागनें।
पतीव्रता का पुण्य पाने। प्रसाद के माध्यम से।।४६।।

एक के बाद एक आये। प्रसाद कुंकुम ले जाए।
पर माँ का कुंकुम बढ़ता जाए। रुके न ज़रा भी।।४७।।

तीनसौ चारसौ महिलायें। और पुरुष भी आये।
प्रसाद कुंकुम ले जाए। फिर दीन ढलने लगा।।४८।।

आसुओं में डूब कर। चली यात्रा शमशान की ओर।
कुछ लोग थे आगे की ओर। उन्हें मिला लक्कड़हारा।।४९।।

चन्दन की लकडियाँ इकट्ठी कर। दो गुच्छे बनाकर।
उन लोगों को दे कर। कहा लक्कड़हारे ने ।।५०।।

“कहा किसी ने हमें ऐसे। जीस औरत को ले आयेंगे।
उन की चिता के लिए। चन्दन की लकडीयां दो।५१।।

हम ने बिलकुल किया वैसे।” सारे लोग सोचने लगे।
कौन यह लकडीयां भेजे। चिता रचने लगे लकड़ियों से ।।५२।।

चीता रची थी सुन्दर। शव रखा उस के ऊपर।
माँ का करे जयजयकार। आशीर्वाद मांगे माँ से सारे।।५३।।

“अब कौन हमें संभाले”। ऐसे सोचे भक्त सारे।
लौटे शमशान से थके हारे। मन में माँ की याद लिए।।५४।।

दुसरे दीन वापस गये। अस्थी ले आने शमशान से।
बनी थी चन्दन के भस्म से। शुभ्र समाधी जानकी माँ की।।५५।।

सुगंध से भरी हवा। पेड़ पंखा करे वहाँ।
पर राख में न मिली अस्थियाँ। जब ढूंढी लोगो ने।।५६।।

ढूँढने वालों को कर्पुर मिला। तब लोगों को पता चला।
कर्पुरांगी हुई माँ। प्रमाण रखा चिता में।।५७।।

घर लेकर आये वे। दर्शन लिया सब ने।
विसर्जन किया नदी में। भाव पूर्ण श्रद्धांजलि के साथ।।५८।।

क्यों की अस्थी न मिले। सब लोग यह मान चले।
माँ सदेह स्वर्ग सिधारे। कलियुग में भी संतत्व बताये।।५९।।

सब को समान सृष्टी के नियम। न चुके किसी के कर्म।
वैसे ही मृत्यु और जन्म। संतों को भी भोगने लगे।।६०।।

निर्गुण निराकार रूप में। संत सब को मदद करे।
महानता उन की न ढले। देह के जाने के बाद।।६१।।

आया तेरहवा दीन। आये आप्त और भक्त जन।
करे माँ की आत्मा को वंदन। भक्ती से सारे लोग।।६२।।

माँ के निर्वाण से पहेले। जो कही थी उन्हों ने।
वह बात याद की कुसुमजी ने। और माँ की पेटी खोली।।६३।।

उस में मिली तेरा साडीयाँ। तब सोचे मिल कर बेटियाँ।
पहली तेरा सुहागनों को साडीयाँ। देंगे पूजन कर उन का ।।६४।।

बाकियों का करेंगे पूजन केवल। हल्दी कुंकुम लगा कर।
ऐसे मन में सोच कर। बैठी पहली तेरा सुहागने।।६५।।

पर जब साडीयाँ करे अर्पण। वापस पेटी भरे पूर्ण।
संतुष्ट करे हर सुहागन। तीनसौ से जादा साडीयाँ निकली।।६६।।

असंख्य लोग ले प्रसाद भोजन। तृप्त हो सब का मन।
अंत में करे पूजन। एक गरीब महिला का।।६७।।

जब पेटी खोली। तब उस में से निकली।
भारी कीमती साड़ी। देकर संतुष्ट किया उसे।।६८।।

माँ की कृपा का ले अनुभव। आश्चर्य करे सारे भक्त।
माँ का रहे अस्तित्व। भक्तों के लिए सदा।।६९।।

जब वंदन करे पूजाघर में। तो प्रकाश दिखाई दे।
जैसे हीरे जवाहरात चमके। उस पूजा घर के अंदर।।७०।।

मन में सारे लोगो ने सोचा। माँ ने केवल देह खोया।
अस्तित्व उन का बाकी रहा। निर्गुण रूप में।।७१।।

निर्गुण रूप को माँ के। सारे भक्त प्रणाम करे।
और आशीर्वाद मांगे। मन से माँ के पास।।७२।।

ऐसे ही बातो बातो में। लोग लगे याद करने।
यज्ञ के कारण आये थे मिलने। पिछली चैत्र अष्टमी को।।७३।।

उस समय नहीं था। किसी को भी यह पता।
के आखरी बार मिलना होगा। उस मानव रूप धारिणी देवी से।।७४।।

पर जिस ने यज्ञ किया था। उसे शायद पता होगा।
क्यों के वह मांत्रिक था। जेठालाल पुराणी।।७५।।

उसी ने किया होगा टोना। उस के दु:श्कृत्यों का निशाना।
बन कर चल बसी माँ। दुःख हुआ चिमणाजी को।।७६।।

लोग शंकाओं से बेचैन हुए। पुराणी को ढूँढने लगे।
ऐसे कुछ दीन बीत गये। मिलने आया जेठालाल।।७७।।

उस ने दादा के पैर छुए। बड़ी विनम्रता से पूछे।
“उद्धार किया मेरा जीस ने। कहाँ गयी वह मेरी माँ”।।७८।।

तब घर के लोग सारे। चिढ़ कर उस पर बरस पड़े।
“टोना कर माँ की जान ली तुम ने। हद हुई दुष्कर्मों की।।७९।।

अब ढोंग कर पूछने आये। शर्म भी न आयी तुम्हें”।
तब जेठालाल कहे। “माँ की थी अगाध शक्ती।।८०।।

कुकर्म मेरे सारे। जीस माँ ने हरे।
कैसे उस का नुकसान करे?। वह तो थी देवता।।८१।।

उन की अगाध शक्ती। मन्त्र से मैंने जानी थी।
इस लिए करी बिनती । मोक्ष दे बुरे कर्मों से।।८२।।

मेरे कर्म पूर्वजन्मों के। शायद अच्छे होंगे।
अवसर पाया इसी लिए। माँ के चरण छूने का ।।८३।।

उन्हों ने अपना महानिर्वाण। किया था हमें कथन।
स्वर्गवास का शुभदीन। लिख लिया था पंचांग पर।।८४।।

पर गौहत्या के पाप की। कसम उन्होंने दी थी।
इस लिए न कथन की। यह हक़ीकत आप को”।।८५।।

जब पंचांग देखा। तब उस में था लिखा।
अवसर चैत्र नवमी का। तारिख और समय साड़ेबारह का ।।८६।।

तब सब को चला पता। माँ को पहले ही पता था।
बेकार में जेठालाल का। अपमान किया हम ने।।८७।।

जब गुस्सा उतर गया। जेठालाल से मांगे क्षमा।
“बेकार में ही संशय लिया। माँ की महानता समझ आयी”।।८८।।

दीन मास बीत गये। सारे अपने काम में उलझे।
माँ का स्मरण करते हुए। जीवन काट रहे थे।।८९।।

मालूजी थी गणदेवी में। घर का काम करती रहे।
मन लगा कर अध्ययन करे। पढाई न चुकी काम के कारण।।९०।।

मालूजी की मौसी आयी थी। उन की होनी थी प्रसुती।
मालुजी दीन रात काम करती। पढ़ाई करने का समय न मिले।।९१।।

रात में पढ़ने बैठे पर। साथ न दे थका शरीर।
परीक्षा आयी थी सर पर। पर पढाई पुरी न हो।।९२।।

शिशु को जन्म दे कर। मौसी थी घर पर।
कभी पाठशाला में छुट्टी कर। सेवा करे मालुजी उन की।।९३।।

उन्हें चिंता हो रही थी। पढाई कैसे कर पाएंगी।
रात में वाचन कर लेती। जैसे तैसे नींद टाल कर।।९४।।

रात में एक बार ऐसे ही। मालुजी कर रही थी पढाई।
पाठ्य पुस्तक पढ़ रही। तब कोई फेरे हाथ पीठ पर।।९५।।

धीरे से मूड कर देखे। पीछे उन्हें नानीजी दीखे।
बैठी थी पास उन के। प्रेम से देख रही थी।।९६।।

जानकी माँ कहे उन से। “बिलकुल भी नहीं डरे।
निश्चिंत होकर चली जाए। परीक्षा के लिए।।९७।।

जानती हूँ तुम ना कर पायी। ढंग से परिक्षा की पढाई।
पर परीक्षा में लिख पाओगी। सारे प्रशों के उत्तर”।।९८।।

ऐसा आशीर्वाद पाये। नानीजी के प्यार से।
गदगद हो जाए। आत्मविश्वास जागा मन में।।९९।।

मालूजी कहे सब से। “नानीजी मिली थी मुझ से।
“फूली ना समाये खुशी से। माँ की महीमा जान कर।।१००।।

विश्वास लिए मन में। मालुजी गयी परीक्षा देने।
वही प्रश्न आये परीक्षा में। जो पढ़े थे मालूजी ने।।१०१।।

असंभव संभव हुआ। मालुजी ने कृपा फल पाया।
उत्तीर्ण हो गयी परीक्षा । माँ के आशीर्वाद से।।१०२।।

पहेले देह रूप में थी। अब विदेही बनी।
भक्तों का साथ छोड़ा नहीं। ऐसी ममता माँ की।।१०३।।

जैसे रास्ते में चलते हुए। माँ बच्चे का हाथ पकडे।
उसे भटकने न दे पाये। संभाले उसे संकटों से।।१०४।।

यही बिनती चरणों में माँ के। हमे सही राह पर चलायें।
और संकटों से बचाए। हाथ न छोड़े हमारा।।१०५।।

हम दोनों हाथ फैलाए। यही मांगे दान उन से।
और करे सदा मुख से। नाम स्मरण जीवन भर।।१०६।।

जो रहे माँ की कृपा में। उन की छत्रछाया में।
विश्वास श्रद्धा लिए मन में। उस के कार्य सफल हो।।१०७।।

जो यह ग्रंथ पढ़े। प्रयत्नों को उस के।
निश्चीत स्वरुप से। यश प्राप्त होगा।।१०८।।

।। ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य द्वादशोsध्यायः समाप्तः।।

।।शुभं भवतु।।
।। श्रीरस्तु।।

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